कुचामनसिटी। पृथ्वी दिवस: चर्म रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सरिता कलवानिया ने बताया की जिस प्रकार चमड़ी का स्वास्थ्य पूरे आंतरिक स्वास्थ्य का प्रतिरूप होता है उसी प्रकार क्लाइमेट परिवर्तन धरती की बीमारी का संकेत है।
यह क्लाइमेट चेंज की बीमारी दिनों दिन बदतर होती जा रही है। इसमें बड़ा रोल सॉलिड और लिक्विड वेस्ट मिस मैनेजमेंट का है। जिसका अहम भाग प्लास्टिक है। इस साल की पृथ्वी दिवस की थीम प्लैनेट वर्सेज प्लास्टिक है। प्लास्टिक आधुनिक युग का वरदान है पर इसका अंधाधुंध प्रयोग पर्यावरण के लिए गले की फांस बन गया है।
प्लास्टिक कचरा आधुनिक युग का रक्तबीज है जो खत्म नहीं होता और टूट कर छोटे प्लास्टिक या माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाता है। जो हमारी कृषि भूमि को बंजर और हवा पानी को दूषित कर रहा है। आज विश्व में अगर कोई निर्विवाद रूप से सर्वव्यापी है तो वो है प्लास्टिक का कचरा।
आज विश्वभर में कचरे का मुख्य भाग प्लास्टिक है जो लीचेट के रूप में मीथेन बनाता है जो ग्लोबल वार्मिंग में कार्बन डाई ऑक्साइड की अपेक्षा ज्यादा शक्तिशाली और लंबे समय तक बने रहने वाला कारक है। माइक्रोप्लास्टिक के रूप में ये हमारी खाद्य श्रंखला में शामिल हो चुका है। एक अनुमान के अनुसार एक इंसान हर साल लगभग 250 gms प्लास्टिक खाने पीने द्वारा ग्रहण कर लेता है। ये मां के दूध, इंसान के खून, दिमाग, प्लासेंटा इत्यादि में जगह बनाता जा रहा है।
वो केंसर, हार्मोनल डिस्टर्बेंस जैसी बीमारियों का कारण बनता है। खुद प्लास्टिक नेचुरली खतम या कम होने में लंबा समय तो लेता ही है, नित्य प्लास्टिक को जलाने से से निकलने वाले वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स , बेंजीन जेसे केंसर कारक तत्व हजारों सालों तक वायु में बने रहते हैं। पौधरोपण से भी दूर नहीं होते और बारिश के पानी में मिलकर हमारी खाद्य श्रंखला में समाते रहते हैं।
इसका समाधान प्लास्टिक का रिफ्यूज, रिड्यूस,रीयूज, रिसाइकल, अपसाइकल है। जरूरत है प्लास्टिक मैनेजमेंट रूल की अक्षरक्ष पालना की। स्वीडन जैसे देश इसमें अग्रणीय और हमारे लिए प्रेरणादाई है। इस अवसर पर मरीजों को जूट के बेग वितरित किए गए और सिंगल यूज प्लास्टिक को ना कहने की शपथ दिलाई गई।
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