Friday, November 1, 2024
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कुचामन न्यूज़: प्रशासन की विफलता, सांभर झील में फिर पक्षियों मौत

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कुचामन न्यूज़ सांभर झील में एक बार फिर बोटुलिज्म बीमारी के कारण पक्षियों की मृत्यु हो रही है। संक्रमित पानी में कोलाई, भारी धातुएं और बैक्टीरिया के उच्च स्तर स्थानीय पारिस्थितिकी को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।

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बोटुलिज्म वैक्सीन की अनुपलब्धता ने स्थिति को और अधिक चिंताजनक बना दिया है। प्रशासन की लापरवाही संक्रमण के प्रसार को बढ़ा रही है।

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पहले भी 2019 में ये बीमारी आयी थी। तब भी रेस्क्यू सेंटर में कई पक्षियों की मृत्यु ने वन विभाग की विफलता को उजागर किया है। और लकवे जैसे लक्षणों के कारण यह संकट और भी गंभीर हो गया था आज भी स्थिति वैसी ही है।

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2019 के बाद भी प्रशासनिक और प्रबंधन स्तर पर  कई कमियां सामने हैं। उच्च क्षमता के ड्रोन का उपयोग न होना और वन एवं पशुपालन विभाग के बीच समन्वय की कमी है। सांभर साल्ट की नमक उत्पादन इकाइयों का बढ़ता प्रभाव और प्रशासन की आपातकालीन कार्रवाई में देरी ने स्थिति को और बिगाड़ा है। विशेषज्ञों की टीम का समुचित सहयोग न मिलना और रेस्क्यू सेंटर में सुविधाओं का अभाव इस संकट को और भी जटिल बना रहे हैं।

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अभी भी पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ा जा रहा है

पर्यावरणीय मुद्दों की बात करें तो झील के जलस्तर में अचानक कमी और प्रदूषण का बढ़ता स्तर भी चिंताजनक है। नमक उत्पादन के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन और अवैध रिसोर्सेज का निर्माण जैव विविधता के संरक्षण में कमी का कारण बन रहा है। फ्लेमिंगो जैसे प्रवासी पक्षियों की संख्या में गिरावट और जलमार्गों का रुकना स्थानीय वन्यजीवों के लिए खतरा पैदा कर रहा है। जो पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ने का काम कर रहा है।

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केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग की कमी

कानूनी और नीतिगत स्तर पर भी कई समस्याएं हैं। रामसर साइट कन्वेंशन का उल्लंघन और पर्यावरणीय प्राधिकरण का गठन होना के बाद भी स्थिती में सुधार नही आया है। यह गंभीर चिंता का विषय है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग की कमी और निष्कर्षों पर कार्रवाई की कमी ने संकट को और बढ़ा दिया है। संवेदनशील क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं का अनुमोदन और कानूनी कार्रवाई का अभाव इस संकट को और भी गंभीर बना रहा है।

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पर्यावरण शिक्षा का अभाव

स्थानीय समुदाय की लापरवाही और जागरूकता अभियानों की कमी ने भी इस समस्या को बढ़ाने में योगदान दिया है। स्थानीय लोगों में पर्यावरण शिक्षा का अभाव और पक्षियों के संरक्षण के लिए सामुदायिक भागीदारी की कमी ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। इस प्रकार सांभर झील में पक्षियों की मौत का मामला न केवल एक स्वास्थ्य संकट है बल्कि यह पर्यावरणीय कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक गंभीर समस्या बन चुका है।

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स्थायी समाधान के लिए दीर्घकालिक पर्यावरण योजनाओं, जल स्रोतों के संरक्षण के लिए कानूनों, और समुदाय आधारित प्रबंधन कार्यक्रमों की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग और संरक्षण प्रयासों में सहभागिता बढ़ाना भी महत्वपूर्ण है। ताकि इस संकट का सामना किया जा सके और पक्षियों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।

इन सभी कमियों के चलते यह बीमारी एक बड़ा रूप ले सकती है। प्रशासन को इन सभी कारणों की ओर ध्यान देना आवश्यक है। नहीं तो एक बार फिर हजारों पक्षियों की मौत का जिम्मा सरकार एक-दूसरे पर डालकर इन समस्याओं को भूल जाएगी।

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