Friday, November 1, 2024
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कुमावत समाज का रुख तय करेगा हार जीत का गणित

राजनीतिक घरानों की राड़ में बाड़ बनकर उभरे थे हरीश कुमावत

  • हरीश कुमावत के निधन के बाद पहला विधानसभा चुनाव
  • परंपरागत वोट बैंक रहे कुमावत समाज में बिखराव

 नावां विधानसभा चुनावों पर एक नजर… हेमन्त जोशी @ कुचामनसिटी। नावां विधानसभा के दिग्गज नेता रहे हरीश कुमावत के निधन के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। अब कुमावत समाज का रुख ही नावां विधानसभा में जीत हार का निर्धारण करेगा।

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हरीश कुमावत नावां ही  नहीं नागौर जिले में भाजपा के एक मजबूत स्तम्भ रहे हैं। कुमावत ने ही वर्तमान में भाजपा के मजबूत दावेदार विजयसिंह चौधरी की भाजपा में एंट्री करवाई थी। जबकि पहले विजयसिंह चौधरी का परिवार का परिवार कांग्रेसी था। राजनीतिक इतिहास पर एक नजर डालें तो हरीश कुमावत ने कांग्रेस से विधायक रहे रामेश्वरलाल चौधरी को भी चुनावी मैदान में शिकस्त दी है।

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हरीश कुमावत ने ही महेन्द्र चौधरी को भी चुनावी मैदान में 2 बार हार का स्वाद चखाया है। अब भले ही महेन्द्र चौधरी मंच से हरीश कुमावत को याद करके कुमावत समाज के वोट बैंक पर नजर बनाए हुए है। लेकिन 1982 के बाद से ही कुमावत समाज मुख्य रुप से  भाजपा का वोट बैंक रहा है।

अब इस चुनाव में कुमावत समाज से भी दो नेता टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, जबकि हरीश कुमावत के रहते कुमावत समाज एकजुट रहा। अब ऐसे में देखना यह होगा कि इस चुनाव में कुमावत समाज का क्या रुख रहता है। कुमावत समाज का रुख ही उनके भविष्य की राजनीति वर्चस्व की लड़ाई साबित होगा।

दावेदारों के पिता लड़े चुनाव

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कांग्रेस के नेता महेन्द्र चौधरी के पिता हनुमानसिंह चौधरी ने 1962 में निर्दलीय चुनाव लड़ा था। चुनाव जीतकर चौधरी  ने कांग्रेस की सरकार बनाने में सहयोग किया। लेकिन 1967 में उन्हें किशनलाल शाह के सामने हार का सामना करना पड़ा। भाजपा के नेता विजयसिंह चौधरी के पिता रामेश्वरलाल चौधरी ने 1972 में कांग्रेस से चुनाव लड़ा और निर्दलीय हनुमानसिंह चौधरी को हराकर जीत हासिल की।

 1985 में हरीश कुमावत ने लड़ा चुनाव

1985 में पहली बार हरीश कुमावत ने नावां विधानसभा से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और अपनी जीत दर्ज करवाई। 1990 में भी हरीश कुमावत ने रामेश्वरलाल चौधरी को हराकर जीत हासिल की। 1993 में वापस रामेश्वरलाल चौधरी ने अपनी जीत दर्ज करवाई और हरीश कुमावत को हराया। 

1998 में आए महेन्द्र चौधरी

1998 में कांग्रेस की टिकट लेकर पहली बार महेन्द्र चौधरी चुनावी मैदान में उतरे थे। उस जमाने में रामेश्वरलाल चौधरी की टिकट कटवाकर महेन्द्र चौधरी मैदान में आए तो उनका राजनीति मेें कद बढ़ गया। हालांकि कुमावत के सामने वह चुनाव नहीं जीत सके। इसके बाद 2003 में भी हरीश कुमावत ने उन्हें हार का मुंह दिखाया। 2008 में पहली बार महेन्द्र चौधरी ने हरीश कुमावत को हराकर पहली बार जीत हासिल की थी। 

2010 में भाजपा से प्रधान बनें विजयसिंह

हरीश कुमावत ने चुनाव हारने के बाद 2010 के पंचायतीराज चुनावों में विजयसिंह चौधरी पर बड़ा दांव खेला और उन्हें भाजपा में शामिल कर प्रधान बनाया। इसके बाद रामेश्वरलाल चौधरी को परिवार भाजपा में आ गया।

इसके बाद पार्टी ने 2013 में विजयसिंह चौधरी को ही चुनाव मैदान में खड़ा कर दिया और विजयसिंह चौधरी पहली बार भाजपा के टिकट से विधायक चुने गए।  लेकिन 2018 में एक बार फिर महेन्द्र चौधरी ने विजयसिंह को हराकर जीत हासिल कर ली।
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