डॉक्टर रामावतार शर्मा @ जयपुर।
हमारे शरीर में दर्द दो प्रकार के होते हैं। एक तो तीव्र ( एक्यूट) और दूसरा दीर्घकालिक ( क्रोनिक )। तीव्र दर्द किसी त्वरित कारण से होता है जैसे किसी अंग में पथरी का फंस जाना, शरीर की किसी वाहनी में रुकावट, ज्वर, चोट आदि से जनित दर्द तीव्र होता है। इस तरह के दर्द का इलाज अक्सर दवा से किया जाता है। दूसरा और ज्यादा लोगों में पाया जाने वाला दर्द लंबे समय से शरीर की किसी न किसी हिस्से में होता रहता है। सबसे सामान्य उदाहरण कमर के नीचे के हिस्से का दर्द, घुटनों का दर्द, एड़ी का दर्द आदि हैं।
इस दीर्घकालिक दर्द का पीड़ित व्यक्ति की पूरी जीवनशैली पर बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जो जीवन की कई संभावनाओं को नष्ट कर देता है। अभी तक इस दर्द का किसी भी विधि में जिस भी तरह से उपचार हो रहा है वह अधूरा है जिसमें पीड़ित व्यक्ति को कोई संतोषजनक राहत नहीं मिलती है। पीड़ित व्यक्ति के कितने ही कार्य बाधित होते हैं और जीवनपर्यंत इलाज उसकी आर्थिक स्थिति पर भी अच्छा खासा दुष्प्रभाव डालता है। जितने भी उपचार विकसित हुए हैं जिनमें शल्य चिकित्सा भी शामिल है वे सभी राहत पहुंचाने की कसौटी पर अधूरे साबित हुए हैं।
इस सब के बीच कुछ चिकित्सा वैज्ञानिकों ने लीक से हट कर सोचना प्रारंभ किया है और अब इस विषय पर एक नया दृष्टिकोण विकसित हो रहा है। उन्होंने यह जानने के प्रयास किए हैं कि क्या भोजन एवम् खाद्य पदार्थ किसी व्यक्ति के शरीर में दर्द के प्रति संवेनशीलता बढ़ा सकते हैं? यदि कोई व्यक्ति दर्द को लेकर अधिक संवेदनशील है तो निश्चित तौर पर मामूली दर्द भी बर्दास्त के बाहर हो सकता है जबकि दूसरा व्यक्ति उसी मात्रा के दर्द को सहन करते हुए अपना कार्य करने में सक्षम है। अभी प्रकाशित एक ताजा शोध के अनुसार दीर्घकालिक ( क्रोनिक ) दर्द के अहसास यानि संवेदनशीलता पर इस बात का बड़ा प्रभाव पड़ता है कि आप का भोजन किस प्रकार का है।
यदि किसी व्यक्ति के भोजन में सैचुरेटेड फैट्स यानि संतृप्त वसा की अधिकता है तो इस व्यक्ति को दर्द का अहसास सामान्य व्यक्ति से कहीं अधिक होगा और जो दर्द आराम से बर्दास्त किया जा सकता है वही दर्द ऐसे व्यक्ति के लिए बर्दास्त से बाहर हो जायेगा। संतृप्त वसा से भरपूर भोजन के उदाहरण फ्रेंच फ्राई, गुलाब जामुन, कचोरी समोसे , जलेबी और अन्य गहरे तले भोज्य पदार्थ होते हैं। कभी कभी स्वाद की संतुष्टि के लिए इनको ग्रहण करना बुरा नहीं है क्योंकि हमारे खाने में दस प्रतिशत तक सैचुरेटेड फैट से ऊर्जा सुरक्षित तरीके से प्राप्त की जा सकती है परंतु इस तरह के भोजन का नियमित उपयोग शरीर की दर्द के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा देता है।
इस अत्यधिक संवेदनशीलता का कारण संतृप्त वसा द्वारा शरीर की कोशिकाओं में प्रज्वलन यानि इंफ्लेमेशन ( एक तरह की सूजन ) पैदा करना है जिसके फलस्वरूप शरीर में उत्पन्न हुए कई रसायन नर्व तंत्र को प्रभावित कर दर्द को तो बढ़ा देते हैं और उसको सहन करने की नैसर्गिक ( प्रकृति प्रदत्त ) शक्ति को कम कर देते हैं। ऐसे में लोग दर्द निवारक दवाओं का अत्यधिक उपयोग करने लगते हैं जिसके फलस्वरूप उनके आमाशय, गुर्दे, लीवर और हृदय को बड़ा नुकसान पहुंच सकता है और मृत्यु भी हो सकती है।
इस तरह से हम देखते हैं कि यदि हम हमारे भोजन में सैचुरेटेड फैट्स यानि तला हुआ भोजन सिर्फ स्वाद परिवर्तन के लिए यदा कदा और थोड़ी मात्रा में रखते हैं तो लंबे समय तक बने रहनेवाले दर्द में तकरीबन दर्द निवारक दवा जितना ही आराम पा सकते हैं। यहां पर यह भी देखा गया है कि लोग घी तेल के प्रयोग को बिल्कुल ही शून्य कर देते हैं जोकि उचित नहीं है। वसा शून्य भोजन करने से हमारे शरीर में विटामिन ए, डी, ई और के की कमी हो जाती है जो स्वास्थ्य की लिए नुकसानदेह होती है। एक संतुलित भोजन में 25 से 35 प्रतिशत वसा होनी चाहिए जो एक औसत व्यक्ति के लिए करीब अस्सी ग्राम प्रतिदिन के आस पास होती है। भोजन संतुलित हो और स्वास्थ्यवर्धक हो इस बात का ध्यान रखते हुए तली हुई वस्तुओं पर नियंत्रण आपकी दर्द सहने की क्षमता को बढ़ाएगा और आपको दर्द निवारक दवाओं की जरूरत से मुक्त रखेगा। शोध का यह नया क्षैत्र है जिसमें अभी काफी विस्तार से अध्ययन की आवश्यकता है।
सेहत : ऐसा भोजन आपके दर्द को बढ़ाता है
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