नावां: हमारे शहर के युवा अब सिर्फ स्मार्ट ही नहीं, समझदार भी हो गए हैं। सावन के महीने में कई युवा उपवास रख रहे हैं और मांस-मदिरा से दूरी बना ली है।

एक युवा का कहना है कि “मैं पिछले चार साल से हर बार सावन के पूरे महीने उपवास करता हूं। इससे मेरा वजन भी कम हो जाता है और बॉडी ‘डिटॉक्स’ हो जाती है।”


करीब-करीब यही सोच उन सभी युवाओं की है, जो सावन के महीने को आस्था के साथ-साथ हेल्थ का त्यौहार भी मानते हैं। इन युवाओं के लिए सावन का महीना केवल पूजा-पाठ और धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि खुद को अंदर से शुद्ध करने का जरिया बन गया है। युवाओं की यह सोच उनके परिवार वालों को भी अच्छी लग रही है।
जिम व योगा पर फोकस:
शहर के जिम और योगा सेंटरों में युवाओं की संख्या बढ़ गई है। एक फिटनेस क्लब के ट्रेनर के मुताबिक, सावन शुरू होते ही जिम जॉइन करने वालों की संख्या 25 से 30 फीसदी तक बढ़ गई है। योग शिक्षकों का कहना है कि व्रत के दौरान सात्विक भोजन और योग-प्राणायाम से शरीर को डिटॉक्स किया जा सकता है।

कई युवा मानसिक शांति के लिए काउंसलर्स और साइकोलॉजिस्ट से भी सलाह ले रहे हैं, जहां वे तनाव प्रबंधन, मेडिटेशन, माइंडफुलनेस और डिजिटल डिटॉक्स के तरीके सीख रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह का सकारात्मक बदलाव आगे चलकर युवाओं की सेहत और सोच को बेहतर बनाएगा।
हल्का भोजन और नियमित व्यायाम:
पहले सावन का महीना व्रत-उपवास और पूजा तक सीमित रहता था, लेकिन अब यह युवाओं के लिए जीवनशैली सुधारने का अवसर बन गया है। शहर के कई युवा श्रावण मास में मांस-मदिरा से पूरी तरह दूरी बनाए हुए हैं। खानपान में सात्विक व हल्का भोजन, नियमित व्यायाम और डिजिटल डिटॉक्स जैसी आदतें अब उनकी प्राथमिकता बन चुकी हैं।
विशेषज्ञों की सलाह:
- आदतों में स्थायी बदलाव लाएं।
- सात्विक भोजन और नियमित व्यायाम को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
- व्रत और डिटॉक्स के दौरान शरीर के पोषण का भी ध्यान रखें।
युवाओं का नया एजेंडा:
खान-पान में सात्विकता, फिटनेस पर फोकस और मानसिक शांति की कोशिश – ये सब शहर के युवाओं के नए एजेंडे का हिस्सा बन गए हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि धार्मिक माहौल में लोग अपने भीतर झांकते हैं, जिससे बुरी आदतों को छोड़ना आसान हो जाता है। ऐसे में इस समय शुरू की गई अच्छी आदतों को स्थायी बना लेना ही असली डिटॉक्स है।
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