कुचामन ट्यूरिज्म राजस्थान का नागौर और डीडवाना कुचामन जिला इतिहास, संस्कृति और परंपराओं के लिए तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही इसकी भौगोलिक संरचना भी कई अनछुए प्राकृतिक स्थलों को अपने भीतर समेटे हुए है। ऐसा ही एक प्राकृतिक धरोहर है — कुचामन शहर के दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित दो पहाड़ों के बीच का एक सुरम्य दर्रा।

पढ़ें हेमंत जोशी की यह एक्सक्लूसिव रिपोर्ट


प्रचलित भाषा में शिकारगाह और नारया डूंगरी भी कहा जाता है । यह क्षेत्र जहां एक ओर घने वन क्षेत्र से आच्छादित है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरणीय संतुलन और जैव विविधता की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हम जब स्थानीय चौपहिया वाहन निर्माता विक्रमसिंह शेखावत की बनाई गई विली (मिनी जीप) गाड़ियों में सवार होकर इस जंगल सफारी के लिए पहुंचे तो यहां की फिजाएं देखकर मन आनंदित हो गया। यहां राजा – महाराजा बरसो पहले (प्रतिबंध से पहले) शिकार के लिए आते थे। जिसके कुछ अस्तित्व आज भी मौके पर है।

इसके अलावा यहां पर कई छोटे बड़े वन्य जीव भी विचरण करते है। करीब 2 घंटे की इस यात्रा के बाद ऐसा लगा कि यहां पर्यटन का स्थल विकसित किया जा सकता है। इस दौरान हमारे साथ विक्रमसिंह शेखावत के अलावा श्रीपाल सिंह रसाल, पत्रकार विनोदकुमार गौड, फोटो जर्नलिस्ट लक्ष्मण कुमावत, राहुल, सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर सुरेश भीचर सहित अन्य लोग भी साथ थे।


आज जब राज्य और देश भर में ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देने की बात हो रही है तो ऐसे में यह क्षेत्र एक उत्कृष्ट उदाहरण बन सकता है कि कैसे पर्यावरण संरक्षण और पर्यटन विकास एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। यहां मौजूद प्राकृतिक सौंदर्य, शांत वातावरण, वन्य जीवों की उपस्थिति और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि इसे एक आदर्श पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की संभावनाओं से भरपूर बनाते हैं।
एक अनदेखा खजाना
यह दर्रा दो ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित है और चारों ओर हरियाली से घिरा हुआ है। घना वन क्षेत्र यहाँ की सबसे बड़ी संपदा है, जो न केवल जलवायु को शुद्ध बनाए रखने में सहायक है, बल्कि इसमें कई वन्य जीव भी पाए जाते हैं। हालांकि, हिंसक पशुओं की गतिविधियाँ इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत कम हैं, जिससे यह पर्यटकों के लिए एक सुरक्षित गंतव्य बनने की संभावनाएं रखता है।
अब तक इस क्षेत्र की विशेषताएं आमजन की नजरों से दूर रही हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि इसे सुनियोजित रूप से पर्यटन मानचित्र पर स्थान दिलाया जाए।
1. जंगल सफारी की शुरुआत: नियंत्रित और पर्यावरण-संवेदनशील जंगल सफारी पर्यटकों के लिए एक आकर्षण बन सकती है। इससे न केवल रोमांच का अनुभव होगा, बल्कि स्थानीय जीव-जंतुओं के प्रति जागरूकता भी बढ़ेगी।
2. व्यू पॉइंट्स का विकास: पहाड़ों की ऊँचाई से देखे गए सूर्योदय और सूर्यास्त की छटा मन को मोहित कर देती है। इस क्षेत्र में व्यू पॉइंट, सनराइज़ और सनसेट पॉइंट विकसित कर पर्यटन को नया आयाम दिया जा सकता है।
3. प्राचीन स्मारकों तक सुगम पहुंच: यदि इस क्षेत्र में कोई ऐतिहासिक स्थल, मंदिर, गुफाएँ या पुरातात्विक महत्व की संरचनाएँ हैं, तो उन्हें संरक्षित कर पर्यटकों के लिए पहुंच योग्य बनाना आवश्यक है।
4. ट्रैकिंग और बर्ड वॉचिंग जैसी गतिविधियाँ: युवाओं और प्रकृति प्रेमियों को लुभाने के लिए इस क्षेत्र को ट्रैकिंग ट्रेल्स, बर्ड वॉचिंग हब और कैंपिंग ज़ोन के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
5. स्थानीय संस्कृति को मंच देना: यहां आने वाले पर्यटकों के लिए स्थानीय कला, हस्तशिल्प, व्यंजन और लोक संगीत का प्रदर्शन एक अलग अनुभव दे सकता है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
पर्यटन विकास की संभावनाएं
यदि वन विभाग और पर्यटन विभाग मिलकर ठोस रणनीति बनाएं, तो इस क्षेत्र में अनेक प्रकार की पर्यटन गतिविधियों की शुरुआत की जा सकती है। कुचामन में प्राचीन किला वर्तमान में पर्यटन स्थल है। इसके अलावा काव्य ऋषि कुंड स्थान, गणेश डूंगरी स्थित गणेश जी मंदिर प्राचीन शाकंभरी मंदिर और मुख्य बाजार में स्थित करीब 3 सौ साल पुरानी बावड़ी शहर के प्राचीन धरोहर है। ऐसे में यदि कुचामन में यह घना वन क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाए तो यहां पर्यटकों की आवाजाही बढ़ सकती है।

पर्यावरण और विकास का संतुलन
पर्यटन के नाम पर अंधाधुंध निर्माण और पर्यावरणीय क्षति की घटनाएं हमारे सामने हैं। अतः यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि इस क्षेत्र में कोई भी विकास कार्य पर्यावरण संरक्षण की प्राथमिकता को ध्यान में रखकर किया जाए। इसके लिए स्थानीय समुदायों को भी योजना में शामिल करना होगा, ताकि वे इस विकास के हिस्सेदार बन सकें।
ईको-टूरिज्म एक ऐसा माध्यम है, जो न केवल प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करता है, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार और आत्मनिर्भरता की ओर भी अग्रसर करता है। इस दृष्टिकोण से कुचामन के इस दर्रे को ईको-टूरिज्म ज़ोन के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव एक दूरदर्शी सोच का हिस्सा हो सकता है।
राजस्थान के पर्यटन में हो सकता है शामिल
कुचामन के दो पहाड़ों के बीच स्थित यह दर्रा एक प्राकृतिक रत्न की तरह है, जिसे अभी तक न तो सही पहचान मिली है और न ही वह विकास, जिसका वह अधिकारी है। यदि सरकार, प्रशासन और स्थानीय नागरिक मिलकर इस क्षेत्र को विकसित करने की दिशा में कार्य करें, तो यह स्थान नागौर ही नहीं, राजस्थान के पर्यटन मानचित्र पर एक नया सितारा बन सकता है।
अब समय आ गया है कि हम अपनी प्राकृतिक धरोहरों को केवल देखने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें सहेजने और समझने के लिए भी यात्रा करें। कुचामन का यह पहाड़ी दर्रा इस दिशा में एक आदर्श शुरुआत बन सकता है।







Hariyajoon Me bhi turijam place Gopeswar Mhadew Madir