
नावां न्यूज: एक तरफ़ सरकारें पर्यावरण बचाने के बड़े-बड़े दावे करती हैं, तो दूसरी तरफ़ ज़मीन पर उन दावों को रोज़ जलता हुआ देखा जा सकता है।

नावां और उसके आसपास की नमक रिफाइनरियों में हर रोज़ सैकड़ों किलो गीली लकड़ी जलाई जा रही है।


यह लकड़ी उन पेड़ों की है जो या तो काटे गए हैं या जंगल से लाए गए हैं। इनमें राजस्थान का राज्य वृक्ष खेजड़ी भी शामिल है, जिसकी रक्षा के लिए इस धरती ने कई कुर्बानियां देखी हैं।
रिफाइनरियों में कोयले को सुलगाने के लिए पहले गीली लकड़ियां जलाई जाती हैं। यह सिलसिला अब इतना बड़ा रूप ले चुका है कि हर दिन करीब 50 पेड़ों के बराबर लकड़ी राख में बदल रही है। एक महीने में यह आंकड़ा 1500 से पार चला जाता है।
रिफाइनरियों में रोज़ाना एक ट्रॉली लकड़ी जलाई जाती है, जिसमें करीब 5 टन लकड़ी होती है। क्षेत्र में 25 से ज़्यादा रिफाइनरियां सक्रिय हैं, यानी प्रतिदिन कुल 125 टन लकड़ी का दहन हो रहा है।
इन ट्रॉलियों को न पुलिस रोक रही है, न प्रशासन। रात के अंधेरे में ट्रैक्टर-ट्रॉलियां गांवों से निकलती हैं और सीधे रिफाइनरियों तक पहुंचाई जाती हैं। पूरे तंत्र की चुप्पी इस काले कारोबार को और गहरा बना रही है।
बात सिर्फ पेड़ों की नहीं है, यह बात उस पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की है जो इन पेड़ों पर निर्भर है। पहले ही झील और आसपास की हरियाली को नमक उद्योग ने निगल लिया, अब बचा हुआ जंगल भी दांव पर लग चुका है।
राजस्थान में वन क्षेत्र पहले ही भारत के कुल वन क्षेत्र का सिर्फ 4.86% है।
सरकार इस वन क्षेत्र को बचाने के बजाय, बर्बाद कर रही है।
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