
साल्ट इंडस्ट्री का सच पार्ट-4

प्रदीप जांगिड़ की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट


नावां न्यूज: जयपुर – नागौर मेगा हाइवे पर नावां से गोविंदी के बीच शाम 6 बजे से रात का सफर खतरनाक साबित हो रहा है। कारण है यहां नमक रिफाइनरियों से फैला प्रदूषण और आसमान में उड़ती नमक की धूल।
जो शाम के समय एक सफेद गुबार बनाकर हवा में घुला रहता है। जिससे विजिबिलिटी कम हो जाती है।
इस 15 किलोमीटर की दूरी में नावां से भिवड़ा नाडा बालाजी मंदिर के आगे से यह प्रदूषण बढ़ जाता है, जो गोविंदी गांव तक रहता है। यहां दर्जनों नमक रिफाइनरियां संचालित हो रही हैं।
इन रिफाइनरियों से निकलने वाले बारीक नमक कण हवा में इस कदर घुल गए हैं कि ये इंसान के शरीर को सीधे तौर पर प्रभावित कर रहे हैं। यह धूल न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि अब यह पर्यावरण को भी बुरी तरह नुकसान पहुंचा रही है और सड़क दुर्घटनाओं का कारण भी बन रही है।
इन रिफाइनरियों से दिन-रात उड़ने वाले नमक और धुएं के सूक्ष्म कण हवा में इस तरह घुल जाते हैं कि रास्ते से गुजरने वाले लोगों को पता ही नहीं चलता कि कब सामने से दुर्घटना हो जाए।
यही कण आस पास नियमति रहने वाले लोगों के फेफड़ों और शरीर में प्रवेश कर गंभीर बीमारियों का कारण बन जाते हैं। ये अदृश्य कण धीरे-धीरे शरीर को भीतर से खोखला कर देते हैं, और जब तक इसका अहसास होता है, तब तक इंसान किसी गंभीर बीमारी की चपेट में आ चुका होता है।
रात के समय बनता है जानलेवा धुन्ध
दिन के समय ये कण दिखाई नहीं देते, लेकिन रात के समय तापमान गिरने पर हवा में मौजूद नमी से मिलकर ये नमक कण एक धुंध जैसा रूप ले लेते हैं। यह हाईवे पर विजिबिलिटी को बुरी तरह प्रभावित करता है। इस कारण यहां कई बार गंभीर सड़क हादसे हो चुके हैं, जिनमें लोगों की दर्दनाक मौत हो चुकी है। हर साल कई दुर्घटनाओं के चलते यह इलाका अब ‘रेड जोन’ में शामिल हो गया है।
छात्रों की सेहत पर संकट
इस क्षेत्र में एक महाविद्यालय भी स्थित है, जहां बड़ी संख्या में विद्यार्थी अध्ययन करते हैं। लेकिन नमक रिफाइनरियों की लापरवाही का खामियाजा इन छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। बाइक और बसों से आने वाले छात्रों को एक स्वस्थ और साफ वातावरण नहीं मिल पा रहा है। यहां उनके स्वास्थ्य के साथ नहीं भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
“PM2.5 (पार्टिकुलेट मैटर 2.5) एक बेहद खतरनाक वायु प्रदूषक है, जो हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों के कारण होता है।
यह रक्तचाप, हृदय रोग और सांस की गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ाता है। नमक की धूल PM2.5 के निर्माण में बड़ी भूमिका निभा रही है।”
पर्यावरण को पहुंच रहा नुकसान
पर्यावरण सभी जीवों के जीवन का आधार है, लेकिन कुछ लोग पैसों के लालच में इसे बर्बाद करने पर तुले हैं। पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी कई समितियों ने इन रिफाइनरियों पर सवाल उठाए हैं, लेकिन कार्रवाई के अभाव में इनके हौसले और बुलंद होते जा रहे हैं। पहले इस क्षेत्र में जो बड़े और पुराने पेड़ थे, वे अब सुख चुके हैं। नई पौध भी इस प्रदूषित वातावरण में अधिक समय तक टिक नहीं पा रही है और जल्दी सूख जाती है।
खेती की जमीन बन रही बंजर
रिफाइनरियों की स्थापना से पहले इस क्षेत्र में खेती होती थी, लेकिन अब हालात ये हैं कि फसलों में एक दाना भी खाने लायक नहीं बचता। कुछ जगहों पर पौधे उगते ही नहीं और जहां उगते हैं, वहां उनकी पत्तियां झुलस जाती हैं। इस स्थिति को “मृदा लवणीयकरण” कहा जाता है, जब मिट्टी में नमक की मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि पौधे जड़ों से पानी नहीं खींच पाते। इससे मिट्टी कठोर हो जाती है और धीरे-धीरे अपनी उर्वरता खो देती है।
किसानों की चिंता बढ़ी
स्थानीय किसानों से बातचीत में सामने आया कि क्षेत्र में जनजीवन धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। यह इलाका अब केवल एक औद्योगिक क्षेत्र बनकर रह गया है, जहां सिर्फ मशीनें काम कर रही हैं।
खेतों की मिट्टी में नमक की अधिकता के कारण बीज अंकुरित नहीं हो रहे और जो होते हैं, उनकी पत्तियां झुलस रही हैं। सिंचाई के लिए जो पानी उपलब्ध है, वह भी अत्यधिक खारा हो गया है। इसके चलते खेती योग्य भूमि की कीमतें भी गिरने लगी हैं।
किसान नहीं चाहते कि उनकी उपजाऊ भूमि पर केवल रिफाइनरियां ही बनें, लेकिन अगर खेती बंद हो गई, तो उन्हें मजबूरन अपनी जमीन बेचनी पड़ेगी। क्योंकि अब कोई भी किसान इस क्षेत्र में जमीन खरीदना या बसना नहीं चाहता।
घरों में पहुंच रहा यह प्रदूषण
गोविंदी में स्थानीय महिलाओं ने बताया कि नमक की यह धूल अब केवल खेतों और सड़कों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उनके घरों तक घुसने लगी है। तेज हवा के झोंके इस धूल को घरों में ले आते हैं, जिससे उन्हें खिड़की-दरवाजे बंद रखने पड़ते हैं। अब उन्हें अपने ही घर में रहना मुश्किल हो रहा है।
यह पूरी स्थिति यह दर्शाती है कि कुछ लोगों के लालच के कारण न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि पेड़-पौधे, इंसान और जानवर सभी इसकी चपेट में आ रहे हैं। अभी तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे स्थानीय लोग सरकार और प्रशासन से निराश हैं। इस स्थिति में केवल वे लोग खुश हैं जिनकी रिफाइनरियां यहां संचालित हो रही हैं।

कुचामन सिटी के अतिरिक्त जिला कलक्टर राकेश गुप्ता से इस गंभीर मामले को लेकर Kuchamadi.com टीम ने विशेष बातचीत की।
सवाल: नावां की रिफाइनरी से फैल रहे प्रदूषण और सर्टिफिकेट जारी करने को लेकर प्रशासन की क्या प्रतिक्रिया है?
जवाब: नमक विभाग के अधिकारियों से इस विषय में बात की जाएगी कि क्या उन्होंने रिफाइनरी को कोई सर्टिफिकेट जारी किया है। यदि सर्टिफिकेट जारी किया गया है, तो इतना प्रदूषण क्यों फैल रहा है? और अगर सर्टिफिकेट जारी नहीं किया गया तथा इसकी आवश्यकता है, तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? जल्द ही स्थिति स्पष्ट कर कार्रवाई की जाएगी।
सवाल: रिफाइनरी में बाल श्रम को लेकर क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
जवाब: रिफाइनरियों में छापा मारने गई टीमों से जानकारी मिली कि जब जांच टीम रिफाइनरी पर पहुंचती है, तो जानबूझकर गेट बंद कर दिया जाता है। जब अधिकारियों द्वारा जबरन गेट खुलवाया जाता है, तो नाबालिग बच्चों को पिछली दीवारों से कूदकर भागने को मजबूर करते हैं। इस दौरान कई बच्चे घायल भी हो जाते हैं। ADM कहा कि इस बार अचानक दबिश दी जाएगी, ताकि दोषियों को पकड़ा जा सके।
सवाल: मजदूरों की सुरक्षा और उपकरणों की व्यवस्था पर क्या कदम उठाए जाएंगे?
जवाब: अगर जांच में ऐसा पाया गया, तो संबंधित रिफाइनरी प्रबंधन के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। एक टीम इस पर विशेष निगरानी रखेगी।
साल्ट इंडस्ट्री से जुड़ी अन्य खबरें-
नावां न्यूज: ना मास्क और हेलमेट, रिफाइनरी में श्रमिक की मौत का सौदा 5 लाख में
नावां की नमक रिफाइनरियों में चेतावनी बोर्डों के बावजूद जारी है मासूमों से मजदूरी
नावां की नमक रिफाइनरियों में नाबालिग बच्चे बने हुए है कामगार मजदूर