नावां शहर/कुचामन न्यूज: सांभर झील जहां कभी हजारों प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट गूंजती थी अब फिर एक डरावने सन्नाटे में डूब गई है।
2019 में हुई पक्षी त्रासदी की यादें अब फिर से जीवित हो रही हैं। जब झील ने अपनी गोद में हजारों पक्षियों की लाशें समेट ली थीं। बड़ा सवाल है कि क्या एक बार फिर वही काली घटा लौट आई है? जब झील के किनारे 25,000 से अधिक पक्षियों की मौत हुई थी। किसी डरावनी कहानी से कम नहीं थी।
विशेषज्ञों ने बताया था कि बोटूलिज्म जैसे रोग ने झील को अपनी चपेट में ले लिया था। अब फिर से ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं। पक्षियों के अचानक मरने की खबरें तेजी से आ रही हैं। और स्थानीय लोगों में भय का माहौल है।
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सांभर झील में हाल ही में मिली पक्षियों की कुछ नई लाशें इस बात का संकेत दे रही हैं कि एक और संकट हमारी ओर बढ़ रहा है। शनिवार को जब प्रशासन को झील किनारे सैकड़ों मरे हुए पक्षियों की सूचना मिली तो ऐसा लगा जैसे एक बार फिर से उस खौफनाक मंजर की याद ताजा हो गई हो।
उपखंड अधिकारी जीतू कुलहरी और तहसीलदार रामेश्वर गढ़वाल ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। लेकिन जब उन्होंने देखा कि लगभग 100 पक्षियों की लाशें बिखरी पड़ी हैं। तो उनकी धड़कनें तेज हो गईं। घायल पक्षियों की हालत देखकर ऐसा लगा जैसे वे किसी खतरनाक बीमारी के शिकार हुए हैं।
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उपखंड अधिकारी जीतू कुलहरी ने कहा कि पक्षियों के मरने की सूचना मिलते ही टीमें गठित की गई हैं। अब तक 25 से 30 मरे हुए पक्षियों का निस्तारण किया गया है। लेकिन यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।
चीफ एडिटर हेमंत जोशी से बातचीत में झील में हुई पक्षी त्रासदी की घटना पर क्या बोले वन मंत्री –
वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के मंत्री संजय शर्मा ने सांभर झील में हो रही पक्षियों की मौत पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि इस मुद्दे की जांच के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी जो सांभर झील की स्थिति की गहनता से जांच करेगी। मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि सभी आवश्यक सुविधाएं विशेषज्ञों को प्रदान की जाएंगी ताकि इस स्थिति का समुचित समाधान किया जा सके।
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प्रारंभिक जांच में पता चला कि मृत पक्षियों में बॉटुलिज्म के लक्षण पाए गए हैं। लकवे जैसी स्थिति में फंसे घायल पक्षियों को रेस्क्यू सेंटर भेजा गया है। जहां उनका उपचार किया जाएगा। लेकिन सवाल उठता है, क्या यह फिर से एक बड़े संकट की शुरुआत है?
सांभर झील जो फ्लेमिंगो और अन्य विदेशी पक्षियों का प्रिय निवास स्थान है, अब इन पक्षियों के लिए एक खतरनाक जगह बन गई है। 2019 की त्रासदी के बाद, जब हजारों पक्षी अकाल मृत्यु का शिकार हुए थे। तब से फ्लेमिंगो झील से डरने लगे हैं। क्या 2024 में फिर से वही खौफनाक मंजर लौटेगा?
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साल 2019 में जब पक्षियों की मौतें हो रही थीं। प्रशासन की प्रतिक्रिया सुस्त रही। स्वास्थ्य विभाग और पर्यावरण मंत्रालय के बीच समन्वय की कमी ने स्थिति को बिगाड़ दिया। आवश्यक जांच और उपचार में देरी ने न केवल पक्षियों की संख्या को घटाया, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी को भी बुरी तरह प्रभावित किया।
आज जब फिर से सांभर झील में पक्षियों की मौत की खबरें आ रही हैं। तो यह सवाल उठता है: क्या प्रशासन ने पिछले अनुभव से कुछ सीखा है? क्या वे इस बार सक्रिय रूप से कदम उठाएंगे, या फिर से लापरवाह बने रहेंगे? समय का पहिया तेजी से घूम रहा है और कार्रवाई की आवश्यकता है। अगर अब भी स्थिति की गंभीरता को नहीं समझा गया। तो हमें डर है कि 2019 की तरह ही फिर से सांभर झील का इतिहास दोहराया जाएगा। एक बार फिर हमें पक्षियों के दर्द और अपनों के खोने का सामना करना पड़ेगा। क्या हम उस काले साए को दोबारा आने से रोक पाएंगे?
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नॉर्दन शावलर, स्क्वील नमक पक्षियों की प्रजाति को खतरा
सांभर झील जो विभिन्न पक्षियों की विविधता के लिए जानी जाती है अब संकट के मुहाने पर खड़ी है। यहां पाई जाने वाली महत्वपूर्ण प्रजातियां जैसे स्पॉट-बिल्ड (दागदार चोंच) डक, शोवेल (चौड़ी चोंच), पिनटेल (नुकीली पूंछ), पर्पल स्वैम्पहेन, मूरहेन (खादर कुक्कुट), टिकरी, ग्रेबी (वंजुल), कोर्मोरेंट (जलकौवा), इग्रेट (बगुला) और ग्रे हेरॉन (धूसर बगुला) पर गंभीर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसके अलावा सबसे बड़ा खतरा झील में आने वाले ग्रेटर और लेसर फ्लेमिंगो पर भी है।
सांभर झील के पारिस्थितिकी तंत्र में नॉर्दन शावलर स्क्वील एक महत्वपूर्ण प्रजाति है। लेकिन वर्तमान में यह पक्षी सबसे अधिक खतरे में है। हाल ही में जितने भी नए मामले आए हैं, उनमें इस प्रजाति के पक्षियों की संख्या सबसे अधिक है। संकट बड़ा है और इस बार शायद प्रशासन सचेत है। तो स्थिति को सुधार जा सकता है। नहीं तो यह बीमारी बड़ा रूप ले लेगी।
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2019 में सांभर झील में पक्षियों की मौत की स्थिति
सांभर झील में पक्षियों की मौत की समस्या गंभीर थी। जिसमें 25,000 से अधिक पक्षियों की मृत्यु हुई। मुख्य कारण बोटूलिज्म बीमारी थी। जिसकी पुष्टि बरेली के संस्थान ने की थी। स्थानीय प्रशासन की लापरवाही और समय पर मृत पक्षियों को न हटाना इस स्थिति को और बिगाड़ दिया था। उच्च न्यायालय ने इस मामले में विशेष प्राधिकरण बनाने की सिफारिश की थी ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
इस संकट का समाधान स्थानीय समुदाय की जागरूकता और भागीदारी के बिना संभव नहीं था। विशेषज्ञों और एनजीओ की टीमें मौके पर भेजी गई थीं। लेकिन रेस्क्यू सेंटर में चिकित्सा सुविधाओं की कमी है। राज्य सरकार और अन्य विभागों के बीच समन्वय की कमी भी समस्या को जटिल बना रही थी। यदि उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह बीमारी अन्य क्षेत्रों में भी फैल सकती थी। जिससे पारिस्थितिकी संतुलन पर गंभीर असर पड़ सकता था।
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सांभर झील की सुरक्षा के लिए तत्काल और स्थायी कार्रवाई की आवश्यकता थी। वैज्ञानिक शोध, निगरानी, और स्थानीय निवासियों की भागीदारी इस संकट से निपटने में सहायक हो सकती थी। समय पर कदम न उठाने पर स्थिति और बिगड़ सकती थी, जो जैव विविधता और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक सिद्ध होती।
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