हेमन्त जोशी @ कुचामनसिटी. विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं और नेता अब जनता के बीच जाने लगे हैं। नेताओ के बीच जुबानी जंग भी शुरू हो गई है। नागौर जिले के कद्दावर नेता हनुमान बेनीवाल और उपमुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी के बीच पिछले 2 साल से कुछ अच्छे संबंध नहीं है। लोकसभा चुनाव तक भले ही दोनो नेताओं के बीच अच्छा व्यवहार था, लेकिन अब दोनों आर- पार के मूड में है। बेनीवाल कहने को तो महेंद्र को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानते लेकिन नावां में उन्हें महेंद्र चौधरी के खिलाफ बोलना जरूरी भी लगता है। KuchamaDi.com
किस्सा कुछ यूं है कि कुचामन रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों का ठहराव भले ही केन्द्र की भाजपा सरकार ने किया हो लेकिन श्रेय नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल उठा रहे हैं। दरअसल नागौर जिले से सांसद का चुनाव हनुमान बेनीवाल ने भाजपा के गठबंधन से ही जीता था। लेकिन इसके बाद वह भाजपा से अलग हो गए। हाल ही में जम्मूतवी एक्सप्रेस को हरी झण्डी दिखाने के बहाने एक बार फिर हनुमान बेनीवाल नावां विधायक महेन्द्र चौधरी पर जुबानी हमला बोलने से पीछे नहीं हटे। उन्होंने चौधरी के भाई को जेल मे डलवाने जैसी बातें कहीं और यह भी कहा कि महेन्द्र मेरा कोई प्रतिद्वंदी नहीं है। अब इसमें सच्चाई कितनी यह तो बेनीवाल ही जाने, लेकिन दूसरा पहलू यह भी है कि नावां विधानसभा में कांग्रेस का वन मेन शो महेन्द्र चौधरी है। नावां विधानसभा में कांग्रेस से चौधरी के कद का कोई नेता नहीं है जो नावां विधानसभा से चुनाव लड़ सके। इसे चौधरी की राजनीतिक परिपक्वता ही माना जा सकता है।
आप KuchamaDi.com// पर पढ़ रहे हैं … नावां में महेन्द्र चौधरी का कोई प्रतिद्वंदी नहीं है जो इन्हें कांग्रेस में टक्कर दे सकता है। यही नहीं चौधरी के मुकाबले फिलहाल तो दूसरे दलों के पास भी कोई नेता नहीं है। दरअसल नावां विधानसभा से महेन्द्र चौधरी को दो बार लगातार हार का मुंह दिखा चुके हरीश कुमावत के निधन के बाद अब भाजपा भी इनके सामने चेहरा तलाश कर रही है। हालांकि एक बार भाजपा से विजयसिंह चौधरी हरीश कुमावत के समर्थन से इस सीट पर अपनी विजय पा चुके हैं।
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—- यूं रहे हैं राजनीतिक हालात—
वर्तमान में भाजपा से टिकट की दौड़ में शामिल चेहरों में कोई भी नेता राजनीतिक दृष्टि से महेन्द्र चौधरी से अव्वल नहीं है। नावां विधानसभा से महेन्द्र चौधरी अब तक पांच चुनाव लड़ चुके हैं। 1998 और 2003 में हरीश कुमावत ने चौधरी को हराकर जीत हासिल की थी। इसके बाद 2008 में महेन्द्र चौधरी पहली बार विधायक बने थे। 2013 में फिर चौधरी ने चुनाव लड़ा और मोदी लहर की आंधी आई। जिसमें विजयसिंह चौधरी भाजपा से विधायक बनें। चौधरी ने चुनाव हारकर अपनी पत्नी सुनीता चौधरी को नागौर जिला प्रमुख बनाने में सफलता हासिल की। कहा जाता है कि महेन्द्र चौधरी कभी भी सत्ता से बाहर नहीं रहे। भले ही विधानसभा चुनावों में चौधरी ने कई बार हार का सामना किया लेकिन कभी प्रधान तो कभी जिलाप्रमुख, कोई ना कोई सरकारी महकमें की कुर्सी इनके पास रही। बताया जाता है कि लोकसभा चुनाव और कुछ साल पहले तक हनुमान बेनीवाल और महेन्द्र चौधरी के बीच तालमेल ठीक था। अब दोनों के बीच तकरार जगजाहिर है। राजनीति में ऊंट कब किस करवट बैठता है यह कहना मुश्किल है क्यों कि हाल ही में चर्चा तो यहां तक है कि कांग्रेस से सांसद रही ज्योति मिर्धा भी भाजपा में शामिल हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो फिर हनुमान बेनीवाल के लिए नागौर संसदीय सीट पर दुबारा बिना किसी गठबंधन के जीत पाना मुश्किल है। पिछली बार आरएलपी और भाजपा के गठबंधन से ही बेनीवाल सांसद बने थे और मिर्धा को चुनाव हारना पड़ा। अब खुद हनुमान बेनीवाल प्रदेश की राजनीति में रहना चाहेंगे और विधानसभा चुनाव में पूरे दम खम से चुनाव लड़ेंगे। जिससे वह नागौर जिले व दूसरे जिलों से आरएलपी के विधायकों को चुनाव जीताकर ला सके। इससे प्रदेश की नई सरकार में उनका वर्चस्व बढ़ सकता है।
अगले शुक्रवार के अंक में पढ़ें…. किस्सा कुर्सी का पार्ट- 2
हेमन्त जोशी के साथ
Mahendra ji se kya takkar lenge khud hi apne aap me simat jaayenge beniwal ji mahendra choudhary jesa kadwar neta puri nawa vidhansabha me nahi h Jay ho vijay ho mahendra choudhary jindabad.
बेनीवाल नेता साफ़ छवि का नेता है गरीब जनता को न्याय दिलाने का काम किया है और रोलटी वसुली करने वाले ठेकेदारों के खिलाफ आवाज उठाता है और कांग्रेस पार्टी कै नेता तो भषटाचार तो ठेकेदारों से मिलकर वसुली करवाने का काम किया है और प्रशासन भी राज़ के निचे दबे रहते हैं नावां तहसील में कोई कार्य लय में चलें जावे वह नेता से बात कर ही काम करते हैं