Saturday, November 2, 2024
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राग और द्वेष सबसे बड़े शत्रु : आर्यिका विशेषमती माताजी

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विमल पारीक. कुचामनसिटी। आर्यिका विशेषमती माताजी ने कहा कि कर्मों के बन्धनों के क्षय करने हेतु मनुष्य को सबसे पहले राग का त्याग करना होगा। नश्वर वस्तुओं के प्रति आशक्ति ही राग है। इस धरती पर बड़े- बड़े राजा- महाराजा, देवी- देवता, चक्रवर्ती सम्राट, तीर्थकर भगवान ने जन्म लिया किन्तु कोई भी अमर नहीं रहा है ।प्रत्येक जीव को एक दिन सब कुछ यहीं छोड़‌कर जाना पड़ता है, फिर किस हेतु संचय, किस हेतु परिग्रह ( आत्मा के निकल जाने के बाद इंसान की मात्र साढ़े तीन हाथ की जमीन प्राप्त होती है। फिर धीरे-धीरे सभी उसे भूल जाते है। जैन भवन में प्रवचन करते हुये विशेषमती माताजी ने कहा कि जब लाख प्रयास के बाद भी भगवान महावीर के प्रमुख अनुयाई गौतम गणधर को केवल्य ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुयी तो उन्होंने तीर्थकर भगवान से पूछा इसका क्या कारण है। तब भगवान ने बताया कि आपमें अब भी मुझसे राग बना हुआ है। इसका त्याग करें। इस राग के दूर करने के पश्चात् ही गौतम गणधर को केवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुयी। उन्होने कहा कि राग ही द्वेष का कारण बनते है । उसके पास मेरे से ज्यादा क्या… मेरे पास इस जैसे साधन नहीं। यही सोच मुनुष्य के द्वेष भावना का कारण बनती है। अतः पहले आप में राग कम करें निश्चित ही द्वेष कषाय में भी अपने-आप कमी होगी। उन्होने कहा कि पाँच प्रकार के पाप होते हैं, झूठ, हिंसा, लोभ, कुशील और परिग्रह। मनुष्य को उतना ही द्रव्य रखना चाहिए। जितना जीने के लिये आवश्यक हो, अनावश्यक संग्रह पांच प्रकार पापों के कारण बनते हैं।
आर्यिका संघ प्रवक्ता सुरेन्द्र कुमार काला ने बताया कि आज मंगल प्रवचनों में मीना पहाड़िया ने मंगलाचरण किया। धर्मसभा में देवेंद्रकुमार पहाड़िया, भंवरलाल झंझरी, निर्मल सोगानी, संतोष गंगवाल, चंद्रकांता गोधा, राजकुमारी पाटनी, रंजू पहाडिया, कमलादेवी पहाडिया, घेवरमांला पहाड़िया, पुष्पा काला सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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