Thursday, November 21, 2024
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यह कीटो डायट क्या है और कैसे चिकित्सक की सलाह पर करें उपयोग

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ये कीटो डायट क्या है ?

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गेस्ट राइटर डॉ. रामावतार शर्मा, जयपुर
फैशन की तरह खानपान में भी तरह तरह की रुचियां और अंधानुकरण अक्सर आते रहते हैं। इन दिनों कीटो डायट की काफी चर्चा है क्योंकि किम करदाशियां और हल्ले बेरी ने बोल दिया था कि यह तो गजब का भोजन है। फिर क्या था लोग लग गए अंधी दौड़ में शामिल होने। कीटो डायट ऐसा भोजन है जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स बहुत कम मात्रा में, प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पर वसा मुख्य रूप में होती है। कीटो डायट में वसा यानि फैट्स के प्रमुख श्रोत होते है एवोकाडो, पिस्ता, बादाम, अखरोट, काजू, सूरजमुखी के बीज या सूखे मेवों का मक्खन, ताजा कूटे हुए अलसी के बीज, भांग के बीज, चिया के बीज, ऑलिव या घानी का ऑलिव ऑयल, नारियल या अपरिष्कृत ( बिना रिफाइन किया)  नारियल तेल, कको निब्स ( फीकी, अपरिष्कृत चॉकलेट), वसा युक्त दही, साल्मन, ट्यूना, सारदीन आदि मछलियां, पूरा अंडा, मक्खन और चीस।
कीटो डायट इस सिद्धांत पर आधारित है कि यदि शरीर में ग्लूकोज के सारे भंडार को समाप्त कर दिया जाए तो शरीर अपने कार्यों के लिए ऊर्जा के रूप में वसा यानि चर्बी को काम में लेने लगेगा जिसके फलस्वरूप व्यक्ति का वजन कम हो जाएगा। जब वसा ऊर्जा के लिए तोड़ी जाती है तो जो अणु ( मॉलिक्यूल्स) बनते हैं उन्हें कीटोन कहा जाता है, इसलिए इस तरह के भोजन को कीटो भोजन कहा जाता है। कीटो डायट दो तरह से शरीर का वजन कम करती है। एक तो यह वसा को तेजी से ऊर्जा के रूप में काम लेती है और दूसरे भूख जागृत करने वाले हार्मोन्स के उत्पादन को कम करती है जिससे भूख कम लगती है। इसी वजह से चेहरे की त्वचा में तेल कम हो जाता है जिसके फलस्वरुप काफी लोगों के मुंहासे ठीक या कम हो सकते हैं। एक दावा कि कीटो भोजन से बहुत तरह के कैंसर नहीं होते है, अभी किसी वैज्ञानिक अध्ययन में सिद्ध नहीं हुआ है। इस विषय पर लंबे शोध की आवश्यकता है। चूंकि कीटो में कोलेस्ट्रॉल के रक्त स्तर कम हो जाते हैं तो हो सकता है कि यह हृदय और धमनियों को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक हो पर यहां भी और शोध की आवश्यकता है।
इसके अलावा कीटोंस स्नायु तंतुओं को रक्षा प्रदान करते हैं तो एक संभावना बनती है कि वे अल्जाइमर और मिर्गी जैसे रोगों तो नियंत्रण में रखने में सहायता कर सकते हैं। इस सभी संभावनाओं पर अभी तक कोई वैश्विक स्तर के अध्ययन नहीं हुए हैं इसलिए किसी भी व्यक्तिगत दावे को स्थापित तथ्य नहीं माना जा सकता है। महिलाओं, खासकर युवतियों में ओवरी से संबंधित बीमारी पी सी ओ एस को नियंत्रित करने में कीटो डायट सहायक हो सकती है क्योंकि इसमें कार्बोहाइड्रेट्स नहीं के बराबर होते हैं जोकि पी सी ओ एस को बढ़ाते हैं। कम कार्बोहाइड्रेट्स तथा कुछ हार्मोन्स के संतुलन को बना कर कीटो डायट ऐसी युवतियों की सहायता कर सकती है।
जब किसी व्यक्ति के खानपान में इतना बड़ा परिवर्तन होता है तो कुछ अनचाहे प्रभावों को भी ध्यान में रखना पड़ता है। कीटो डायट से गुर्दों में पथरी बनने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसके अलावा रक्त में प्रोटीन को मात्रा तो बढ़ जाती है पर कई विटामिंस एवम् धातु तत्वों की कमी हो सकती है। यकृत ( लिवर) में हानिकारक चर्बी जमा हो सकती है। इसके अलावा कुछ लोगों में कब्ज, थकान, जी मिचलाना, चक्कर और उल्टी आना, बेहद कमजोरी महसूस होना तथा कसरत और शारीरिक श्रम ना कर पाना आदि हो सकते हैं।
कुछ विशिष्ठ समूह होते हैं जिनको कीटो डायट से दूर रहना चाहिए जैसे कि गुर्दे ( किडनी) और अग्नाशय ( पैंक्रियाज) के रोगी, इन्सुलिन पर निर्भर एवम् कुछ विशेष तरह की दवाएं लेने वाले मधुमेह के रोगी, गर्भवती और स्तनपान करवाने वाली महिलाएं। कीटो डायट किसी अच्छी जानकारी वाले चिकित्सक के निर्देशन में ही प्रयोग करनी चाहिए।
लोग कीटो डायट वजन कम करने के लिए लेते हैं। कुछ अति सीमित समय के लिए इसका उपयोग करके वजन थोड़ा घटा भी सकते हैं पर उससे होगा क्या ? यदि जीवनशैली नहीं बदली तो चंद महीनों बाद वही ढाक के तीन पात। शरीर का वजन नियंत्रित रखने का सबसे असरदार तरीका होता है कि वजन बढ़ ही न पाए यानि बचपन से ही जागरूकता बनाई जाए, सक्रिय जीवनशैली अपनाई जाए और स्वाद की बजाय कार्य क्या कर रहे हैं इसके अनुसार भोजन लिया जाए तो बात बन सकती है वरना तो बस ” रहिमन जिव्हा बावरी …”। इसके अलावा आज कल की महंगाई को देखते हुए ऊपर लिखी कीटो डायट इतनी महंगी है कि शरीर का तो पता नहीं पर जेब काफी हल्की हो जायेगी। हालांकि जनता का वीर भाव प्रसंशनीय है, कितनी ही कठिनाइयों से जूझ रही है पर दिखाने के तौर पर मनोबल को ऊंचा बनाए हुए है। पर कब तक ? जनता जिनको जिताती वे तुरंत इस भ्रम में आ जाते हैं कि हम अपनी चतुराई से जीत गए हैं ! इस कारण स्वास्थ्यवर्धक भोजन कम कीमत पर उपलब्ध होगा ऐसा लगता नहीं है।
इस विचित्र से माहौल में अपने स्वास्थ्य को बनाए रखना आसान नहीं है। मेरे अनुभव के अनुसार तो जिस भौगोलिक क्षैत्र में आप जन्म लेते हैं उस क्षैत्र में उपजा अन्न और दूसरे भोज्य पदार्थ आपके लिए सबसे बेहतर होते हैं। आवश्यकतानुसार संतुलन के लिए कुछ अन्य सामग्री भी शामिल की जा सकती है। शरीर संतुलित एवं नियंत्रित भोजन और शारीरिक श्रम द्वारा ही स्वस्थ और हल्का रह सकता है बाकी सब समय के साथ लुप्त होने वाले तरह तरह के फार्मूले आते रहेंगे, जाते रहते हैं।

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