मैं सांभर झील हूं…

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सांभर झील. मैं सांभर झील हूं। खारे पानी के लिए मुझे पूरे विश्व में जाना जाता है। बारिश के दिनों में कई नदियां मुझ में आकर समाहित हो जाती। मीलों तक फैली मेरी सतह पर हिलोरे मारता पानी मुझे प्रफुल्लित रखता था। मुझ में बारिश की बूंदों व नदियों के नीर को क्षार बनाने की असीम शक्ति समाहित है। देशी-विदेशी पक्षी और जलमूर्गियां मेरे सौंदर्य के चार चांद लगाती है। प्रकृति ने मुझे मीठे पानी को खारा बनाने का वरदान दिया है। लेकिन यही वरदान मेरे लिए ‘ अभिशाप’ बन कर रह गया। मैं कोई समुद्र तो नहीं थी कि अथाह जल व्याप्त हो। समुद्र की तरह मेरी लहरों ने किसी को नुकसान भी नहीं पहुंचाया। फिर भी मेरा उपयोग समुद्र की तरह होने लगा। मेरी सतह पर भरे पानी से नमक बना लिया। मुझमें समाने वाली नदियों के रास्ते रोक लिए। बारिश की कमी ने रही सही कसर निकाल दी। मैं पूरी तरह सूख गई फिर भी मुझ पर रहम नहीं किया। मशीनों से मेरे सीने में भरे खारे पानी का भी दोहन हुआ। सतह पर बिजली के नंगे तार डाल दिए। कभी मेरे दर्द पर किसी ने रहम नहीं किया। सरकारें मेरा शोषण देखती रही। मैं सूख गई तो मैने आस-पास का मीठा पानी भी सुखा दिया। फिर भी किसी सरकार ने मुझे बचाने का जिम्मा नहीं उठाया। १९९० में मुझे जल संरक्षण वाली इण्टरनेशनल संस्थाओं ने रामसर साइट वेट लैण्ड घोषित किया। मुझे बचाने के लिए कई चर्चाएं हुई, खूब वादे हुए। लेकिन मेरी आबरु बचाने का जतन कहीं नजर नहीं आया। अब बारिश में थोड़ा बहुत पानी आता है वह भी कुछ ही दिनों में सूख जाता है। मुझे अपना घर समझने वाले विदेशी पक्षी भी अब मेरे से दूर चले गए है। ग्रेटर फ्लेमिंगो, लेसर फ्लेमिंगो जैसे कई प्रजातियों के विदेशी मेहमान अब इस देश में आकर भी बेघर हो गए है। इन पक्षियों को मेरे जैसा दूसरा प्राकृतिक घर नहीं मिल सकता। अभी कुछ बरस ही बीते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने मेरा दर्द समझा। मेरी रक्षा के लिए सरकार को आदेश दिए। सरकार ने भी अपने नौकरशाहों को कार्रवाई के आदेश दिए। लेकिन नौकरशाह कौनसा दर्द समझने वाले है। सिर्फ रसूख, दबाव, सिफारिशें और स्वार्थ के आगे आदेश बौने रह गए। कमाई के लालच में मेरा दम घुटने दिया। चंद स्वार्थी व्यापारियों के आगे सरकार झूक गई। नतीजा, मेरे सीने पर लगे बोरवेल हटाने की कागजी कार्रवाई होकर रह गई। अब एनजीटी ने मेरा दर्द समझा है। क्या अब भी पिछली सरकारों तरह फौरी कार्रवाई होगी? सुना है बिजली के महकमें ने केबिलें हटाने के लिए नोटिस दिए है। फरमान तो हर रोज आते है लेकिन मेरे ‘अरमान’ अब भी फीके है। गलियारों से तो कानों कान यह भी खबर है कि जिनके बकाया चल रहे है उनके ट्रांसफार्मर उतार कर कार्रवाई दिखा दो। प्रशासन भी नमक उत्पादकों के स्वार्थ को पूरे करने के लिए कुछ इसी तरह करने में है। चर्चा तो यहां तक है कि इस बार भी एनजीटी के आदेशों पर फौरी कार्रवाई का दिखावा किया जाएगा। क्या वाकई दिखावे का ढिंढोरा पीटा जा रहा है या नलकूप, अतिक्रमण और केबिलें हटाने की कार्रवाई की जाएगी? अब भी समय है मुझे बचाने का, नहीं तो मेरा नमक भी ‘इतिहास’ बन कर रह जाएगा। आने वाली पीढिय़ांं मेरे नमक उल्लेख केवल किताबों में ही पढ़ पाएगी।