दबंग-पावरफुल और ‘विकास पुरुष’ महेन्द्र के लिए अब चुनौती, हाथ से निकला जिला, कहीं सीट भी न छिटक जाए
किस्सा कुर्सी का … पार्ट 9
हेमन्त जोशी @ कुचामनसिटी। अशोक गहलोत के जादुई पिटारे से आखिर अब 19 नए जिले निकल ही गए। अपने यहां भी जिले का खूब इंतज़ार हुआ, पर ‘कुचामन जिला’ नहीं निकला। हां, जो जुड़वां निकला वो भी पराया हो गया। हम ठगे से रह गए। छाती पीटने के सिवा कुछ नहीं कर पाए।
अब तो नए जिले बने सो बने, यहां के सारे ही राजनीतिक भी नए तरीके से बनते-बिगड़ते नज़र आने लगे हैं। यानी डीडवाना में तो समीकरण ठीक बैठता दिख रहा है लेकिन नावां का समीकरण अब बिगाड़ के कगार पर है।
सीधे शब्दों में बात करें तो, नए जिलों का दंश अब उनके करीबी महेन्द्र चौधरी को भुगतना होगा। जिला मुख्यालय डीडवाना बनने के बाद महेन्द्र चौधरी की नावां विधानसभा क्षेत्र में जमकर किरकिरी हुई है।
बेहतर होता कि महेन्द्र चौधरी इस किरकिरी के बाद अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए और जनसमर्थन के साथ कुचामन जिले की मांग को मुखर करते। जिससे जनता की भावना भी उनके साथ जुड़ती और सरकार को भी कुचामन के हक में कुछ फैसला करना पड़ता। लेकिन महेन्द्र चौधरी अपनी सरकार के खिलाफ कुछ भी करने में सक्षम नहीं है।
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चेतन डूडी, जिन्होंने समय-समय पर अपना खुद का नजरिया रखा और हमेशा अपने क्षेत्र के फायदे के लिए अपनी आवाज बुलंदी की। लेकिन महेन्द्र चौधरी अब जनता की आवाज बुलंद करने में नाकाम नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नजदीकी होने का दावा करने के वाले महेन्द्र चौधरी आज जनता के बीच कमजोर साबित हुए है।
जिला मुख्यालय डीडवाना बनाए जाने के बाद महेन्द्र और गहलोत की नजदीकियों के मायने भी अब खत्म हो गए है। अब चौधरी को इसका राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। हालांकि अभी आचार संहिता लगने में दो माह शेष है, ऐसे में देखना यह होगा कि महेन्द्र चौधरी इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए कौनसा नया दांव खेलते है।
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आगामी कुछ समय में विधानसभा चुनाव होने है। अशोक गहलोत भले ही नए जिलों के पुनर्गठन के बाद अपनी सरकारी दुबारा बनाने का दावा कर रहे हैं लेकिन डीडवाना-कुचामन जिले का मुख्यालय डीडवाना बनाने पर अब महेन्द्र चौधरी आमजन के बीच घिरते हुए नजर आ रहे हैं। इस नुकसान की भरपाई करने के लिए महेन्द्र चौधरी क्या दांव खेलते है, यह तो कुछ समय बाद सामने आएगा लेकिन फिलहाल महेन्द्र चौधरी पर अब राजनीतिक संकट मंडरा रहा है।
शतरंज की तरह इस राजनीतिक बिसात में भी महेन्द्र चौधरी को शह और मात देने के लिए विपक्ष पूरे दम खम के साथ जुटा हुआ है। हाथी-घोड़े भी चारों ओर से घिरे हुए है। अब तो प्यादे भी अपना सेल्फ डिफेंस कर रहे हैं। सामने मैदान में खेल रही भाजपा में फूट ही महेन्द्र चौधरी को एकमात्र सहारे के तौर पर नजर आ रही है। इस बार संभवतया कोई बजरी का ट्रक भी इन्हें खींच कर नैया पार करने वाले सक्षम नहीं है।
इधर हम बात करें नावां विधानसभा में विकास कार्यों तो जिले को छोड़कर महेन्द्र चौधरी ने जमकर विकास कार्य करवाए है। इन विकास कार्यों को अब जनता कितना याद रखेगी और महेन्द्र चौधरी का समर्थन करेगी यह भी चुनावों में देखने को मिलेगा। कुचामन में अतिरिक्त जिला कलक्टर कार्यालय हो चाहे नावां में कई सरकारी कॉलेज। चौधरी ने नावां कुचामन में विकास के नए स्थापित किए हैं, लेकिन आमजन को जिले की उम्मीद थी। जिले की मांग को लेकर खुद महेंद्र चौधरी भी गहलोत के सामने डटकर खड़े नहीं रह सके। जिससे क्षेत्र के लोगों में महेन्द्र चौधरी के के प्रति असंतोष व्याप्त हैं।
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दरअसल डीडवाना और कुचामन के बीच पिछले 25 साल से जिले की जंग छिड़ी हुई थी। पिछली भाजपा सरकार में भी डीडवाना को जिला बनाने की तैयारी हुई थी जिसका कुचामन में बड़े स्तर पर विरोध हुआ था और आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा। इस बार भी कांग्रेस से विधायक महेन्द्र चौधरी ने हरमंच से कुचामन को जिला बनाने का दावा करते हुए जनता को अंधेरे में रखा।
जिला मुख्यालय डीडवाना बन गया है। जिसके बाद अब कुचामन में धरना प्रदर्शन शुरु हो गए है। जिला बनाओ समिति के आंदोलन को हरकिसी संगठन का सहयोग मिल रहा है। इसका नुकसान महेंद्र चौधरी के साथ-साथ कांग्रेस को भी उठाना पड़ सकता है। भले ही नावां विधानसभा में भाजपा के कई दावेदार है लेकिन जिले की लड़ाई की हार का दर्द पूरी का क्षेत्र की पूरी जनता को हुआ है।
नावां के अंतिम छोर पर बसे गांव मींडा- देवली के लोगों को अब भी लंबी यात्रा के बाद जिला मुख्यालय जाना पड़ेगा। जिले मुख्यालय डीडवाना बनाने की घोषणा के साथ ही लोग कांग्रेसी नेताओं को भी घेरते नजर आए। कांग्रेसियों पर जमकर जुबानी हमले किए गए। सोशल मीडिया पर भी जमकर महेंद्र चौधरी की मजाक उड़ाई जा रही है।
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