कुचामनसिटी। शिक्षा नगरी कहलाने वाले कुचामन शहर के बाजारों में तीज त्यौहारों के माहौल में घटिया मिठाइयां बिक रही है और जिम्मेदार आँखें मूंदकर बैठे है।
पढ़ें हेमंत जोशी की यह खास रिपोर्ट

खाद्य विभाग केवल कमाई के लालच वाले स्थानों से नमूने लेकर इतिश्री कर रहे है।


एक विचित्र विडंबना इन दिनों स्पष्ट रूप से सामने आ रही है। आने वाले दिनों में रक्षाबंधन, भेरू तालाब का मेला और अन्य तीज त्यौहारों और उत्सवों का उत्साह चरम पर रहेगा, लेकिन इस उल्लास के पीछे जो अदृश्य खतरा मंडरा रहा है, वह कहीं अधिक चिंताजनक है।
हर साल जैसे ही त्यौहारों का मौसम आता है, शहर के बाजारों में अस्थाई दुकानें लग जाती हैं। मिठाइयों के ठेले, तख्तों पर सजी सस्ती-सी मीठी वस्तुएं – सोहन पपड़ी, खुरमानी, आगरे का पेठा, सस्ते रसगुल्ले – ग्राहकों को लुभाते हैं। पर क्या कभी किसी ने सोचा है कि इन मिठाइयों की गुणवत्ता क्या है? इन्हें कौन बना रहा है? कहां बना रहा है? और इनमें डाले जाने वाले पदार्थ कितने सुरक्षित हैं?

नहीं, इसकी परवाह किसी को नहीं है। बाहर से आने वाले अज्ञात लोग ठेले पर यह घटिया मिठाइयां सस्ते में बेचकर चले जाते है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन वस्तुओं की कीमत ही उनकी गुणवत्ता की असल कहानी बयान कर देती है।
सस्ती मिठाइयों में उपयोग होने वाले रंग, सिंथेटिक तत्व, गंदा पानी और नकली मावा आम बात हो गई है।
दुर्भाग्य यह है कि हमारे ग्रामीण अंचल से आए भोले उपभोक्ता इन्हें ‘सस्ता और मीठा’ समझकर सहज भाव से खरीद लेते हैं, यह जाने बिना कि वे क्या खा रहे हैं।
शहर के जिम्मेदार महकमे – खाद्य निरीक्षक, स्वास्थ्य अधिकारी, नगरपालिका, पुलिस प्रशासन – सभी मौन हैं।
औपचारिकता निभाने के लिए होली, दिवाली पर कुछ सैंपल जरूर लिए जाते हैं, लेकिन नतीजे सिफर ही निकलते हैं। न कार्रवाई, न जवाबदेही।
कुचामन जैसे शिक्षित कहे जाने वाले शहर में, जहां अनगिनत सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाएं मौजूद हैं, वहां इस गंभीर मुद्दे पर सामूहिक चुप्पी अत्यंत खेदजनक है। अगर कोई खुलेआम शहर के मुख्य बाजार में ज़हर बेच रहा है, और हम शिक्षित लोग आंखें मूंदे बैठे हैं, तो फिर शिक्षा का औचित्य क्या रह जाता है?
यह खबर किसी एक दुकानदार या अधिकारी को निशाना बनाने के लिए नहीं है।
यह प्रश्न है हम सभी से – क्या हमने अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी है? क्या हमारे अंदर से वह सामाजिक चेतना खत्म हो गई है जो समाज के लिए आवाज़ उठाए?
अब समय है कि नगर पालिका, स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और स्वयंसेवी संस्थाएं मिलकर त्योहारों से पहले व्यापक जांच अभियान चलाएं। समय रहते इन घटिया खाद्य सामग्री के सैंपल लिए जाएं प्रयोगशालाओं में परीक्षण हो, और नकली सामग्री बेचने वालों पर कठोर कार्रवाई की जाए।
आमजन को भी जागरूक होना चाहिए कि वह सस्ते में लालच में अपनी सेहत से खिलवाड़ ना करें। सस्ती मिठाइयों के पीछे छिपा खतरा कितना बड़ा हो सकता है।
शिक्षानगरी को वास्तव में शिक्षित शहर बनाना है तो सबसे पहले नागरिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा करनी होगी। मिठास की आड़ में जहर न बिके – यही इस त्यौहार पर सबसे बड़ी सौगात होगी।