अपनी निश्चित हार को भी टाल नहीं सके महेंद्र चौधरी
हेमन्त जोशी @ कुचामनसिटी। नावां विधानसभा के परिणाम में आश्चर्यजनक कुछ भी नहीं रहा। आम जन को चुनाव से ही कहीं ना कहीं पूर्वानुमान था कि विजयसिंह चौधरी 20 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल करेंगे। ठीक वैसा ही परिणाम भी नजर आया।
कुछ उत्साही कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को यह केवल सट्टा बाजार की हवा लग रही थी लेकिन सच्चाई तो यह है कि खुद महेन्द्र चौधरी को अपनी हार स्पष्ट नजर आ रही थी। तभी तो वह राजनीतिक दृष्टिकोण से चुनाव लड़ रहे थे। उपमुख्य सचेतक रहते हुए विकास के साथ-साथ आम जन के दिलों में विश्वास बना लेते तो शायद यह हार नहीं होती।
विजयसिंह चौधरी की सादगी आमजन के दिलों पर राज करती है। हरकोई उनका मुरीद बना हुआ है। जबकि विजयसिंह चौधरी कभी संगठन की गतिविधियों में शामिल नहीं हुए लेकिन आमजन के दु:ख दर्द में वह पूरे 5 साल जनता के बीच रहे।
महेन्द्र चौधरी में इसका अभाव रहा। अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर में तो वह नावां को मानो भूल ही गए। कोरोना काल में जरुर महेन्द्र चौधरी आमजन के हितों के साथ खड़े हुए लेकिन भ्रष्टाचार की कुल्हाड़ी से वह खुद को नहीं बचा सके।
महेन्द्र चौधरी की कार्यशैली हर किसी कार्यकर्ता के मन में खटक रही थी। कांग्रेसी कार्यकर्ता भी चौधरी को हराने की मंशा से उनके साथ काम कर रहे थे। कांग्रेस के जनप्रतिनिधि ही उनकी हार को बढ़ाने के लिए अपना भरसक प्रयास कर रहे थे। चौधरी ने भी अपने ही हितैषी लोगों का नुकसान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।