हेमंत जोशी @ कुचामनसिटी। बंद मुट्ठी लाख की और खुली खाक की। यह एक पुरानी कहावत है। जो एक समाज विशेष के साथ चरितार्थ हो रही है। एक समय था जब एकजुटता ही इनकी सामाजिक एवम राजनीतिक ताकत थी।
अपने कुशल सामाजिक संगठन के बल पर कुमावत समाज से हरीश कुमावत 4 बार नावां विधानसभा के विधायक रहे। 1985 से 2013 तक इस समाज ने अपना सामाजिक वर्चस्व बनाकर रखा।
विधायकी के अलावा उनकी पत्नी यशोदा देवी भी नगरपालिका अध्यक्ष रही। इसके बाद विधायक का चुनाव हारकर खुद हरीश कुमावत भी पालिका अध्यक्ष बने। सर्वाधिक पार्षद भी इसी समाज से जीतकर आने लगे। यहां तक कि इस समाज ने प्रधानी और नावां नगरपालिका की बागडोर को भी अपने हाथों में रखा।
बगावत के बाद बिगड़ी हालत
इसी समाज ने 2018 में अपना वर्षों पुराना पार्टी से रिश्ता नाता तोड़कर बागी होने का दम दिखाया। जिसका नुकसान भी इसी समाज को हुआ। विधायकी तो गई ही लेकिन अन्य राजनीतिक पद भी इनके हाथ से निकल गए। इसके बाद ना तो यह समाज नगरपालिका अध्यक्ष बन सका और ना ही उन्हें किसी पार्टी का सिंबल मिला।
बगावत नहीं, फैसले की छूट
इस बार इस समाज ने बगावत के तेवर तो नहीं दिखाए लेकिन एकजुटता का संदेश भी खुलकर नहीं दे सके। इसका परिणाम तो देरी से आएगा लेकिन यह समाज एक बार फिर अपनी मुट्ठी को बंद करने से डर रहा है। यदि यही हाल रहा और बिखराव हुआ तो नतीजा भी बिखरा हुआ ही होगा। यदि एकजुटता की ताकत दिखाते तो संभव की अपनी ताकत भी दिखा पाते।