Monday, November 25, 2024
Homeशिक्षाखुले आसमान में तलाशें अपनी खुशियों की 'किरण'

खुले आसमान में तलाशें अपनी खुशियों की ‘किरण’

- विज्ञापन -image description

डॉक्टर रामावतार शर्मा  @ जयपुर। वर्तमान समय में विश्व की 45 से 50 प्रतिशत आबादी शहरों में रहने लगी है। शहर दिन रात कार्यरत रहता है। आप चारों तरफ देखिए। कोई मोबाइल देख रहा है तो कोई लैपटॉप या डेस्कटॉप सिस्टम पर बैठा है।

कोई पढ़ रहा तो कोई कुछ लिख रहा है। जो कुछ भी नहीं कर रहा है वह धरती की तरफ यूं नजरें गाड़े देख रहा है मानों धरती की सतह में छेद कर देगा। शहर ने आदमी को यूं प्रशिक्षित कर दिया है कि धरती पर नजर गाड़े रहो कभी कुछ न कुछ तो मिल ही सकता है। हर समय जमीन की तरफ देखते रहना शहरीकरण के साथ हमारी आदत हो गया है। यहां पर आज ही इस लेख को पढ़ने के साथ ही एक प्रयोग कीजिए।

- विज्ञापन -image description

अभी उठिए , अपनी नजर को एक मिनिट के लिए धरती की तरफ टिकाइए और आनंदित होने की कोशिश कीजिए। यह आप इस लेख को यहीं छोड़ कर करेंगे तो शायद सबसे बेहतर होगा। धरती पर जब आप देखते हैं तो आपका दायरा संकुचित ही रहेगा और इस दायरे में जीवन की विविधता समाहित नहीं हो सकती। विविधता के बिना प्रसन्नता और आनंद की अनुभूति नहीं प्राप्त की जा सकती क्योंकि दृश्यपटल परिवर्तित नहीं हो रहा है।

नए अध्ययन इंगित कर रहे हैं कि मानव जीवन एकरसता के कारण अवसाद से घिरता जा रहा है। कद्दावर नेता हो, आईटी सेवा का मोटे वेतन का कर्मी हो, बड़ा लेखक पत्रकार हो या फिर सरकार की शक्ति का प्रतीक कोई अधिकारी। यदि इन सबके जीवन का नजदीक से विश्लेषण किया जाए तो ये सुखी तो हो सकते हैं पर निश्चल प्रसन्नता और आनंद से कोसों दूर हो सकते हैं। इन लोगों ने अपने अनमनेपन को बड़ी चतुराई से अहंकार के आडंबर के पीछे छुपा रखा होता है। ये सब लोग हर समय कार्य, योजना, षड्यंत्र, प्रोपेगंडा आदि में ही व्यस्त रहते हैं।

- Advertisement -image description

इनका चेहरा किसी बालक जैसी अबोध हंसी को तरसता हुआ इस धरती से विदा हो जाता है क्योंकि आनंद संग्रहण नहीं, परित्याग में प्रकट होता है।

अब इस लेख को यहीं छोड़ कर आप अपने घर की छत, बालकनी, लॉन या फिर खिड़की पर जाइए और अगले 60 सेकंड ऊपर आसमान को देखते रहिए और दुखी होने का प्रयास कीजिए। इधर उधर उड़ते पंछी, उगते या डूबते सूरज की परिवर्तित होती लालिमा, बनते बिगड़ते रूप बदलते बादल और नयनों को सुकून देता नीला आकाश आपको दुखी नहीं होने देगा।

चूंकि दृश्यपटल लगातार परिवर्तित होता जाता है तो यदि आप अवसाद ग्रस्त भी हो तो आपका मन कुछ हल्का होने की बड़ी संभावनाएं होती हैं जब आप नीले आसमान को एक दो मिनिट देखते रहते हैं। मनोविज्ञान में इस क्रिया को स्काइकोलॉजी कहा जाता है।

यदि आप बसंत महीने में सूर्योदय या सूर्यास्त के समय नियमित रूप से एक, दो या फिर पांच मिनिट का समय निकाल कर अपनी खिड़की से आसमान को देखते रहें तो हो सकता है आप के जीवन में रस की वृद्धि हो। यदि आप किसी खेत, जंगल या पार्क में जा कर इसका अभ्यास करें तो परिणाम शायद और बेहतर हो सकते हैं।

आसमान पर जीवन का क्षितिज अनंत तक विस्तारित है पर जब आप गर्दन झुका कर पृथ्वी या कोई वस्तु देखते हैं तो आप एक सीमित दायरे पर संकुचित हो जाते हैं। आसमान सर्व तंत्र स्वतंत्र होता है जबकि धरती पर आप मालकीयत चाहने लगते हैं, स्थान से संबंध और उस पर अधिकार जमाना चाहते हैं। संबंध और अधिकार संताप की तरफ पहला कदम होता है इसलिए स्काइकोलॉजी आपके लिए एक बेहतर थेरेपी हो सकती है। इसका जरा ईमानदारी से अभ्यास प्रारंभ कीजिए।

- Advertisement -
image description
IT DEALS HUB
image description
RELATED ARTICLES
- Advertisment -image description

Most Popular

Recent Comments

error: Content is protected !!