
फादर्स डे पर विशेष…
मैं आत्मनिर्भर हूं…
मैं थी घर की लाडली बिटिया। मैं थी घर की चहकती चिरैया।।

मन पढ़ने में कम, खेलने में ज्यादा था। पढ़कर कुछ बनने का, मेरा नहीं इरादा था ।।


दादी, मम्मी, जीजी, भाई सब पढ़ने को कहते थे।
दिनभर जैसे हाथ धो कर मेरे पीछे रहते थे।।
पापा मेरे बड़े सरल पर सख्त अध्यापक थे। काबलियत पर मेरी उनको शक न था, वे सदा कहते थे।।
देखकर मेरी दसवीं का नतीजा, उनको धक्का पहुंचा था।
हंसकर उन्होंने हर दुःख सहजा सीखा था।
बाद के दो वर्षों में मैंने भी मेहनत कर ली थी।
प्रथम श्रेणी से पास होकर पापा की शान रख ली थी।।
आज आत्मनिर्भर हूं, मैं भी पालनहार हूं। पापा की बदौलत इस आर्थिक युग में घर की खेवनहार हूं।
बात किताबी नहीं करती मैं, ये सिर्फ मेरे उदार है।
मैं जो कुछ भी बन पाई, मेरे पापा ही का कमाल है।
मम्मा से प्यार बहुत है, ये तो मैं सदा ही कहती आई।
पापा आपसे कितना जुड़ाव है, मैं ये न बता पाई।।
अस्मिता पारीक, अध्यापिका
बहुत बहुत आभार आपके पृष्ठ पर जगह देने के लिए।