Friday, November 1, 2024
Homeब्रेकिंग न्यूजएक जन्म में कई जीवन जीना संभव है

एक जन्म में कई जीवन जीना संभव है

- विज्ञापन -image description

 

- विज्ञापन -image description

डॉक्टर रामावतार शर्मा, जयपुर। तथाकथित धर्म ग्रंथों की बातों से हट कर देखें तो जीवन बस एक ही बार मिलता है और वो भी चंद वर्षों का। पुनर्जन्म की कल्पना, हूरों का साथ जैसे प्रपंचों में भीरू लोग ही फंस सकते हैं और फंसते रहेंगे। सत्य जो सामने दिखता है उसके अनुसार तो हमारा शरीर महज प्रारंभिक 25 वर्षों में ही विकसित होता है और उसका भी 90 प्रतिशत पहले 14-15 वर्षों में पूर्ण हो जाता है। जिसे लोग जवानी कहते हैं वह वास्तव में जवानी का शिखर है क्योंकि 25वें जन्मदिन के बाद हमारा शरीर प्रौढ़ होने की तरफ बढ़ने लगता है। जीवन का 80-90 प्रतिशत भाग तो दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति में ही निकल जाता है बाकी रुग्णता, व्याधियां और अनर्गल बातचीत में बर्बाद हो जाता है। सामाजिक और पारिवारिक बेड़ियां समय ही नहीं देती कि जीवन को सांझा किया जाए, समझा जाए और इस तरह से जिया जाए कि एक जन्म में कई जीवन जीने का आनंद भोगा जाए वरना तो –
पिंजरे जैसी इस दुनिया में
पंछी जैसा ही रहना है
भर-पेट मिले दाना-पानी
लेकिन मन ही मन दहना है।
जैसे तुम सोच रहे साथी
वैसे आबाद नहीं है हम।
कवि विनोद श्रीवास्तव ने जीवनयात्रा को चंद शब्दों में संजो दिया है।
बहुमत को तो जीवन का अर्थ समझने का न तो समय मिलता है और ना ही उसमें सामर्थ्य विकसित हो पाता है। यही कारण है जिसकी वजह से धरती पर पंडित, मोमिन, पादरियों और अन्य तथाकथित धर्म गुरुओं का साम्राज्य चमकता रहता है। केवल एक अति सूक्ष्म मानव समूह है जो इन सब फंदों को काट कर जीवनरूपी मधुशाला का आनंद ले सकता है जैसा कि कबीर ने कहा है

- Advertisement -image description

सुरती कलारी भई मतवारी, मदुआ पी गई बिन तोले मन मस्त हुआ तो क्यों बोले, साधो भाई क्यों बोले।
फिर भी एक हॉबी के माध्यम से हम एक ही जन्म में कई जीवन जी सकते हैं। बिना घर से निकले विश्व के विभिन्न समाजों, मनुष्यों, प्रकृति आदि से संपर्क स्थापित कर सकते हैं और इन सबको निकटता से जान सकते हैं। इस हॉबी का नाम है साहित्य को पढ़ना। एक लेखक जब कोई पुस्तक लिखता है तो उसके पीछे उसका वर्षों का अनुभव होता है जिसमें उसने कार्य किया है। एक उपन्यासकार जब विभिन्न चरित्रों का सृजन करता है तो उसे हर छोटे एवम् बड़े चरित्र के बारे में विस्तृत अध्ययन करना पड़ता है, कड़ी से कड़ी मिलानी पड़ती है। चरित्र को उसकी गहराई तक ले जाना पड़ता है ताकि पाठक अंतिम पृष्ठ तक उपन्यास से जुड़ा रहे। जो लेखक यात्रा वृतांत लिखते हैं वो आपको कहां कहां तक नहीं ले जाते हैं। जब आप किसी लेखक का किसी स्थान विशेष का लेख पढ़ते हैं तो क्या आप को ऐसा नहीं लगता कि आप खुद वहां खड़े हो कर सब कुछ देख रहे हैं ? यदि आप सम्यक श्रावक या सम्यक पाठक बन जाते हैं तो आप महसूस करेंगे कि किसी साहित्यिक कृति के प्रारंभ करने वाले आप और समाप्त करने वाले आप में एक बड़ा परिवर्तन आ गया है। आप पुस्तक समाप्ति के बाद कुछ कुछ दूसरे रूप में अपने आप को देख समझ पाते हैं।
जीवन की विकट स्थितियों में आपके द्वारा पढ़ा गया कोई साहित्यिक पात्र आपके सामने प्रस्तुत हो जाता है और आप अपनी मानसिक या शारीरिक वेदना या आनंद उसके साथ बांट सकते हो। इस तरह से आपके द्वारा पढ़ी गई हर पुस्तक आप के जीवन में एक सहयोगी जैसी भूमिका निभा सकती है यदि आपने उसे एकाग्रता के साथ पढ़ा हो। चूंकि कोई लेख या उपन्यास पढ़ते समय आप एकाग्रचित्त हो जाते हो तो समय के साथ आपके सोचने की शक्ति में गहराई आ जाती है , आपकी विश्लेषण करने की क्षमता ज्यादा पैनी हो जाती है और बढ़ी हुई जानकारी आपको जीवन के सही निर्णय लेने में सहायक होती है। चूंकि आपके पास संवाद करने को बहुत कुछ होता है तो इसके बल पर आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जाती है, आत्म सम्मान नए पायदान चढ़ने लगता है।
प्रसिद्ध लेखक जॉर्ज आर आर मार्टिन के अमर वाक्य याद रखने लायक हैं ” एक पाठक अपनी मृत्यु से पहले हजारों जीवन जी लेता है। वह व्यक्ति जो जीवन में कोई साहित्य पुस्तक नहीं पढ़ता है वह मात्र एक ही जीवन जी पाता है। “

- Advertisement -
image description
IT DEALS HUB
image description
RELATED ARTICLES
- Advertisment -image description

Most Popular

Recent Comments

error: Content is protected !!