नागौर जिले का यह शहर मार्बल की सबसे बड़ी और पुरानी मण्डी है। बरसों पहले ऊंटगाडिय़ों और बैलगाडिय़ों की मदद से मकराना के मार्बल को आगरा ले जाकर ताजमहल बनाया गया था। आज यह मार्बल ट्रकों व अन्य दूसरे वाहनों से देश सहित विदेशों में पहुंच रहा है।
मकराना के इस सफेद संगमरमर से प्रतिवर्ष अरबों रुपए का कारोबार होता है। ग्लोबल हैरिटेज में शामिल करने से अब फिर से यह व्यापार बढा है।पिछले कई सालों में अधिकांश खानों पर रोक और बाजार में चलन में आए सस्ते पत्थरों व टाइल्स से मकराना का बाजार पिछले पांच सालों में गिर गया था। वैश्विक स्तर पर नई पहचान मिलने के बाद मकराना के मार्बल उद्यमियों को फिर से मार्बल के व्यापार में बढोतरी की उम्मीद जगी है।
मकराना का मार्बल उद्योग पिछले कई सालों से आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। मार्बल पत्थरों को चीरने वाली अधिकांश गैंगसा मशीनें विगत कुछ वर्षों में बंद पड़ी थी। हालांकि बाजार में मकराना के मार्बल की मांग आज भी बहुतायत में होती है लेकिन मकराना के मार्बल के नाम से बाजार में दूसरे पत्थरों की बिक्री की जा रही है। ऐसे में मकराना के मार्बल उद्योग को इसका बड़ा खामियाजा उठाना पड़ा था। हालांकि मकराना के मार्बल का बड़े स्तर पर किशनगढ से भी व्यापार हो रहा है। मकराना के व्यापारियों का कहना है कि मुगलों के समय से ही मकराना के मार्बल की उपयोगिता रही है, लेकिन राज्य सरकारों ने कभी मकराना शहर को विकसित करने एवं मार्बल उद्योग को बढावा देने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। जिसके चलते मार्बल नगरी मकराना आज भी मुलभूत सुविधाओं से वंचित है।
दो साल में फिर से शुरु हुआ है व्यापार
मकराना की सबसे अच्छी खानों में गिनी जाने वाली चकडूंगरी की खाने पिछले कई सालों से बंद पड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट की रोक के चलते करीब साठ खानों में मार्बल का खनन बंद पड़ा था। गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट की रोक हटने के बाद इन खानों पर फिर से खुदाई कार्य शुरु हो सका है। जिससे मकराना में बड़े स्तर पर मार्बल का खनन शुरु हुआ। अब वल्र्ड हैरिटेज में शामिल होने के बाद बाजार में मकराना के मार्बल की मांग बढी है।
28 से 18 प्रतिशत जीएसटी का फायदा
मकराना के मार्बल पर पहले पांच फीसदी वेट लगता था। जिसे जीएसटी के दायरे में लेने के बाद 28 प्रतिशत टैक्स कर दिया गया। कुछ महिनों पूर्व सरकार ने वापस मार्बल को 18 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में लिया गया था। इसके अलावा मकराना को बड़ा नुकसान नोटबंदी से हुआ था। नोटबंदी के बाद यह रियल स्टेट का कारोबार पूरी तरह प्रभावित हुआ था। ऐसे में निर्माण कार्यों में कमी आई थी। अब मकराना का व्यापार फिर से एकबारगी बढ गया है।
सरकार की यह घोषणाएं जो अधुरी
मकराना के मार्बल उद्योग के लिए राज्य सरकारों की कई घोषणाएं ऐसी है जो कागजों में दफन होकर रह गई। मकराना का मार्बल एरिया, नावां के निकट सांभर झील एवं पुष्कर सहित कुचामन एवं आस-पास के क्षेत्रों को मिलाकर पर्यटन क्षेत्र विकसित करने के लिए पिछली सरकार में तैयारी हुई थी। इसके अलावा गत सरकार में जयपुर से नावां, मकराना होते हुए जोधपुर तक फॉरलेन हाइवे सडक़ की घोषणा की गई थी। इस सडक़ का भी निर्माण कार्य शुरु नहीं हुआ। ऐसे में यह शहर आज भी मेगा हाइवे की सडक़ से अलग है। यहां के व्यापारियों का कहना है कि मार्बल लदान होकर जाने वाली गाडिय़ों को भी अधिकारी परेशान करते है। जिससे अधिकांश लोग सीधे ही किशनगढ से मार्बल खरीद कर हाइवे से निकल जाते है। ऐसे में मकराना का मार्बल उद्योग प्रभावित हो रहा है।
भारत ही विदेशी इमारतों में भी चमक है मकराना के मार्बल की
भारत का विश्व प्रसिद्ध ताजमहल ही नहीं दुबई में स्थित अबू धाबी की मशहूर शेख जायद मस्जिद मकराना के मार्बल को लेकर चर्चा में रह चुकी है। इसके निर्माण में राजस्थान के मकराना का संगमरमर लगा है। यह दुनिया की सबसे खूबसूरत मस्जिद है। जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जा चुके है। ऐसा नहीं है कि मकराना के मार्बल ने दुबई की इस मस्जिद की खूबसूरती में चार चांद लगाएं हों बिल्क देश और दुनिया की कई बड़ी और मशहूर इमारतों में भी यह मार्बल अपनी चमक बिखेर रहा है।
अयोध्या में राममंदिर के चौखट पर लगाया जाएगा मकराना का मार्बल
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