जिस गौमाता के नाम पर करोड़ों रुपए का चंदा इकट्ठा हो जाता है, आज वही गौमाता शिक्षा नगरी में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है।
कुचामनसिटी. शहर में गोचरान की सैकड़ों एकड़ ज़मीन और गौशाला होने के बावजूद गाय सड़कों पर पड़े कूड़े में भोजन तलाशने को मजबूर है।

कुचामन सिटी सहित आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में सैकड़ों की संख्या में गाय, बछड़े और बैल अपना पेट भरने के लिए दर-दर की ठोकरें खाते फिरते रहते हैं, लेकिन न तो प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान है और न ही गायों के हक में लड़ाई लड़ने वाले समाज के ठेकेदारों का।


सामाजिक कार्यकर्ता परसाराम बुगालिया का कहना है कि कस्बे में गायों के लिए गोचरान की कई एकड़ ज़मीन है, लेकिन उसके बावजूद गाय बेसहारा हो चुकी है। न तो उनके रहने की व्यवस्था है और न ही खाने की, जिस कारण गाय अपनी भूख मिटाने के लिए कभी किसी के दरवाज़े पर तो, कभी कूड़े के ढेर में भोजन की तलाश में लगी रहती है।
प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। लोगों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि इन बेसहारा पशुओं के लिए सरकार ने कोई योजना न बनाई हो, परंतु ये योजनाएं सिर्फ़ कागज़ों तक ही सीमित हैं, जबकि धरातल पर हकीकत कुछ और है।
गौशाला में है पर्याप्त स्थान
लोगों का कहना है कि गौशाला में गायों के रख-रखाव के लिए पर्याप्त स्थान है, के बावजूद भी सैकड़ों की संख्या में गौवंश शहर की मुख्य सड़कों व गलियों में भटकने को मजबूर है। आज सामाजिक व धार्मिक संस्थाएं गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के लिए सरकार से लड़ाई लड़ने को तैयार हैं।
हालांकि इन भटकते गौवंश की ओर किसी का भी ध्यान नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता परसाराम बुगालिया और शहरवासियों की मांग है कि गलियों में भटकने वाले गौवंश को गौशाला में छोड़े जाने की व्यवस्था की जाए।
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