
साल्ट इंडस्ट्री का सच पार्ट- 2

नावां. की नमक रिफाइनरियां राजस्थान ही नहीं देशभर में पहचान रखती हैं। लेकिन इन रिफाइनरियों की सफेदी के पीछे छिपा है एक कड़वा सच- बालश्रम।


हालांकि इन फैक्ट्रियों के बाहर बड़े-बड़े बोर्ड लगे हैं जिनमें लिखा है कि बालश्रम अपराध है, किसी भी कर्मचारी की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए और 1098- 24 घंटे निःशुल्क सहायता नंबर लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे उलट है।
पिछले कुछ दिनों में की गई पड़ताल में सामने आया कि कई नमक रिफाइनरियों में 14 से 17 साल तक के बच्चे पैकिंग, ढुलाई और सफाई जैसे कामों में लगे हुए हैं। सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक चलने वाली शिफ्ट में ये बच्चे कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। कुछ बच्चों ने बताया कि वे सप्ताह में सातों दिन काम करते हैं और उन्हें महीने के अंत में नाममात्र की मजदूरी मिलती है।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये बोर्ड केवल कागज़ी औपचारिकता बनकर रह गए हैं। “अगर प्रशासन या श्रम विभाग द्वारा नियमित निरीक्षण होता, तो इतनी बड़ी संख्या में बाल मजदूर सामने नहीं आते,” एक कार्यकर्ता ने कहा।
नावां की रिफाइनरियों में नमक की सफेदी के बीच बच्चों का बचपन घुलता जा रहा है। प्रशासन की चुप्पी और फैक्ट्री प्रबंधन की अनदेखी ने मिलकर बाल अधिकारों का मज़ाक बना दिया है।
नावां की नमक रिफाइनरियों में नाबालिग बच्चे बने हुए है कामगार मजदूर
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