कुचामनसिटी. बदलते मौसम के बीच एक ओर जहां मरीजों की संख्या बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर चिकित्सा प्रशासन लापरवाह साबित हो रहा है। चिकित्सालय की अधिकांश जांच सुविधाएं या तो बंद है या फिर जांच रिपोर्ट गलत मिल रही है। ऐसे में कुचामन के राजकीय चिकित्सालय में मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
सोनोग्राफी के लिए मरीजों का सरकारी चिकित्सालय या तो नम्बर ही नहीं आता और नम्बर आने के बाद सोनोग्राफी हो भी गई तो भी मरीज परेशान होते रहते हैं। चिकित्सालय में इन दिनों वायरल मरीजों के साथ-साथ अन्य मरीजों का भी आउटडोर बढ़ा है। बदलते मौसम के साथ मरीज सर्दी-जुखाम व बुखार से ग्रसित होकर चिकित्सालय पहुंचते है। जिनकी फेफड़ों में इंफेक्शन के लिए एक्स रे करवाना होता है। लेकिन चिकित्सालय में कई बार एक्सरे मशीन खराब पड़ी रहती है। जिससे मरीजों को बाहर प्राइवेट जांच केन्द्रों पर जाकर एक्स रे करवाना पड़ रहा है। इससे मरीजों को आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है।
जिला हॉस्पिटल के हालात ऐसे
शहर का यह राजकीय चिकित्सालय जिला स्तरीय चिकित्सालय है। नावां, मकराना, परबतसर, मौलासर क्षेत्र के बीच में यह चिकित्सालय सबसे बड़ा है। यहां क्षेत्र के मरीज उपचार की उम्मीद में पहुंचते हैं। लेकिन यहां पर ना तो मरीजों को ऑपरेशन की सुविधा मिल रही है और ना ही अन्य जांचों की। जिससे दुर्घटना में घायल होकर आने वाले मरीजों को भी उपचार के लिए बाहर भेजा जा रहा है। यहां तक की नि:शुल्क जांच के नाम पर भी मरीजों के साथ केवल छलावा हो रहा है। जिससे मरीजों को लाभ पहुंचाने की सरकार की मंशा भी अधूरी है। सरकार की ओर से पिछले दिनों शुरु की गई विशेष प्रकार की ३६ जांचे भी चिकित्सालय में नहीं हो रही है। हालांकि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यह जांचें सरकार के स्तर पर ही अटकी हुई है।
90 लाख मासिक खर्च फिर भी रेफरल हॉस्पिटल- कुचामन के शहरवासियों को बेहतर चिकित्सा सुविधा मिल सके, इसके लिए सरकार की ओर से कुचामन के चिकित्सालय में हरमाह करीब 90 लाख रूपए खर्च किए जाते है। जिसमें करीब 30 लाख रूपए चिकित्सकों के वेतन में जाता है और अन्य पचास लाख रूपए नर्सिंग स्टाफ के वेतन, चिकित्सालय के संविदा कर्मचारियों, सफाई कर्मचारियों व बिजली समेत अन्य कार्यों के लिए खर्च होते है। इसके अलावा भी सरकार की ओर से समय-समय पर भवन निर्माण, चिकित्सा संसाधनों के लिए व दवाओं पर खर्च किए जाते है। यह खर्च सालाना करीब दस करोड़ रूपए है। इतना भारी-भरकम खर्च होने के बावजूद मरीजों को निजी चिकित्सालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और अपनी जैब कटवानी पड़ती है। चिकित्सकों ने इस चिकित्सालय को महज रैफरल हॉस्पिटल बना रखा है। इस चिकित्सालय में महज परामर्श देकर मरीजों को रवाना कर दिया जाता है। आधा दर्जन सर्जन होने के बावजूद ऑपरेशन के मामले में चिकित्सालय फैल साबित हो रहा है।
प्राइवेट लैब पर मोटा कमीशन, इसलिए जांच बाहर-
चिकित्सालय में आवश्यक स्वास्थ्य जांच सेवाओं में शुमार जांचे नि:शुल्क की जाती है। जिसमें खून की सीबीसी जांच सबसे महत्वपूर्ण है। लेकिन सीबीसी जांच मशीन भी बरसों पुरानी है और आए दिन खराब होती रहती है। खराब होने के बाद मेंटेनेंस के लिए संबंधित ठेके की फर्म का कर्मचारी आकर मशीन सही करता है, जिसमें करीब पन्द्रह दिन लगते है और इसके बाद भी वह पांच-सात दिन में खराब हो जाती है। जिससे चिकित्सक मरीजों को जांच लिखकर बाहर भिजवा देते है।
मरीज यूं समझे नि:शुल्क और पैसे का खेल- चिकित्सकों की लूट का बड़ा कारण है मरीजों में जागरूकता का अभाव। मरीजों को अपने हितों का खयाल खुद को ही रखना पड़ेगा। एक चिकित्सक ने बताया कि चिकित्सालय में अधिकांश आवश्यक जांचे नि:शुल्क होती है, ऐसे में मरीज को चिकित्सालय के आउटडोर समय में ही चिकित्सक से परामर्श लेकर जांच करवानी चाहिए।
नि:शुल्क जांच एवं स्वास्थ्य लाभ योजनाओं पर ग्रहण…
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