कुचामन सिटी. इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला में दी गई कुर्बानी की याद में, देशभर की तरह रविवार को कुचामन सिटी में भी मोहर्रम का पर्व परंपरागत श्रद्धा और अकीदत के साथ मनाया गया।



कुचामन शहर में 6 ताजियों का भव्य एवं सामूहिक जुलूस निकाला गया, जिसे देखने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी। माहौल गमगीन रहा, लेकिन अदब और अनुशासन की मिसाल हर कदम पर नजर आई।
ताजियों का यह जुलूस शहर के प्रमुख मार्गों से होकर गुजरा और पुरानी धान मंडी में सभी जुलूस एकत्रित होकर विशाल रूप ले गए।

ढोल-ताशों की मातमी धुनों और “या हुसैन” की सदाओं के बीच ताजिए सजे हुए और गुलपोशी के साथ आगे बढ़े।
सदर बाजार से लेकर घाटी कुआं तक का क्षेत्र जनसैलाब में तब्दील हो गया। इतनी अधिक भीड़ रही कि कई स्थानों पर लोगों को खड़े होने तक की जगह नहीं मिली। महिलाओं और युवतियों ने छतों से ताजियों के दीदार किए। बच्चे भी ताजियों के आगे-पीछे उत्साह से चलते नजर आए।
जुलूस के साथ चल रहे अखाड़ों ने मार्ग में कई स्थानों पर पारंपरिक और सांकेतिक हथियारों के साथ करतब दिखाए। तलवारबाज़ी और लाठियों से किए गए प्रदर्शन ने उपस्थित जनसमूह को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस दौरान मदरसा इस्लामिया सोसायटी की ओर से ढोल-ताशा पार्टी और अखाड़ा उस्तादों की दस्तारबंदी भी की गई।
ताजिया जुलूस अंत में छीपा मोहल्ला और खान मोहल्ला से होता हुआ कर्बला पहुंचा, जहां परंपरा अनुसार सभी ताजियों को सैराब किया गया।
इससे एक दिन पूर्व, शनिवार रात को ‘कत्ल की रात’ के रूप में सामूहिक जलसा आयोजित हुआ। इस दौरान ताजियों पर सेहरे चढ़ाए गए और मन्नतें मांगी गईं। इसमें सभी ताजिए व अखाड़ों ने भाग लिया।
इस अवसर पर श्रद्धालु पूरी रात इमाम हुसैन की याद में इबादत और मातम करते रहे। इस पूरे आयोजन में सभी समुदायों के लोगों ने सहयोग दिया और प्रशासन की ओर से भी सुरक्षा व यातायात व्यवस्था चुस्त रही। मोहर्रम का यह आयोजन सामाजिक एकता, परंपरा और श्रद्धा का सुंदर उदाहरण बनकर उभरा।