कुचामन सिटी में प्रस्तावित दो अस्पतालों को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। एक पक्ष चाहता है कि मातृ एवं शिशु चिकित्सालय जिला अस्पताल परिसर में ही बने, जबकि दूसरा पक्ष प्रशासन द्वारा प्रस्तावित उस जगह पर निर्माण के पक्ष में है, जो एक दानदाता द्वारा दी गई है।

कुछ दिन पहले विरोध करने वालों ने तर्क दिया कि यह भूमि डूब और बहाव क्षेत्र में है, साथ ही वह शहर से काफी दूर स्थित है। वहां अब तक ऐसा कोई आधारभूत ढांचा मौजूद नहीं है जो एक अस्पताल की जरूरतों को पूरा कर सके।


वहीं, प्रशासन और दानदाता का कहना है कि यह जमीन मातृ एवं शिशु चिकित्सालय के संचालन और सुगम आवागमन को ध्यान में रखते हुए चुनी गई है। प्रस्तावित अस्पताल के लिए 18 बीघा जमीन की आवश्यकता है, जो जिला अस्पताल परिसर में उपलब्ध नहीं है। प्रस्तावित जगह पर 30 फीट चौड़ा रास्ता है और अन्य सभी मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था भी कर दी गई है।
इस मुद्दे पर टकराव इतना बढ़ गया है कि एक पक्ष पर यह आरोप तक लगाए जा रहे हैं कि वह केवल अपने स्वार्थ के लिए स्थान परिवर्तन की मांग कर रहा है।
नावां जैसी स्थिति न बने कुचामन में
कुचामन में हो रहा यह विरोध कहीं विकास की रफ्तार को न रोक दे। इसका उदाहरण नावां उप-जिला अस्पताल से लिया जा सकता है, जहां कुछ लोगों ने व्यक्तिगत कारणों या अन्य भावनाओं के चलते अस्पताल निर्माण का विरोध किया। यह परियोजना कांग्रेस शासन में शुरू हुई थी और 46 करोड़ रुपये का बजट भी पास हो चुका था, बावजूद इसके निर्माण कार्य कभी शुरू नहीं हो सका।
आखिर में प्रशासन ने फैसला लेते हुए यह आदेश जारी किया कि अस्पताल के निर्माण कार्य को स्थगित कर उस बजट को अन्य शहरों के अस्पतालों के प्राथमिक सेवा केंद्रों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में क्रमोन्नत करने के लिए स्थानांतरित कर दिया जाए। आज नावां के लोग इस फैसले पर पछता रहे हैं।
कहीं कुचामन सिटी. में भी कुछ लोगों के स्वार्थ या निजी हितों के चलते ऐसा न हो कि यहां की विकास योजनाएं अधर में लटक जाएं। अगर प्रस्तावित बजट को समय रहते लागू नहीं किया गया, तो जिला अस्पताल और मातृ-शिशु चिकित्सालय दोनों की परियोजनाएं रुक सकती हैं। इससे न केवल कुचामन के लोगों का नुकसान होगा, बल्कि क्षेत्रीय स्वास्थ्य सेवाओं का भविष्य भी खतरे में पड़ सकता है।
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